सीजी भास्कर, 4 नवंबर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक पहल की शुरुआत की। उन्होंने एक लाख करोड़ रुपये के शोध एवं नवाचार कोष (PM Research Innovation Fund) की घोषणा करते हुए कहा कि भारत अब विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक महाशक्ति बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
नई दिल्ली में आयोजित ‘उभरते हुए विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार सम्मेलन (Emerging Science, Technology and Innovation Conference – ESTIC)’ के पहले सत्र का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में नवाचार का एक आधुनिक और सशक्त इकोसिस्टम तैयार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार उच्च जोखिम और उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं को वित्तीय मदद देकर ऐसे शोध कार्यों को प्रोत्साहित कर रही है जो भारत के वैज्ञानिक और औद्योगिक परिदृश्य को नई ऊंचाई देंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह कोष न केवल सार्वजनिक संस्थानों के लिए, बल्कि निजी क्षेत्र में भी अनुसंधान एवं विकास की संस्कृति को बढ़ावा देने में सहायक होगा। उन्होंने बताया कि “इस महत्वपूर्ण निवेश का उद्देश्य जनता को लाभ पहुंचाना, उद्योगों को नवाचार के नए अवसर देना और युवाओं के लिए रिसर्च को आकर्षक बनाना है। वर्तमान में भारत अपनी जीडीपी का केवल 0.6 प्रतिशत अनुसंधान एवं विकास पर खर्च करता है, जो वैश्विक औसत से काफी कम है। इनमें से 36 प्रतिशत हिस्सा निजी क्षेत्र से आता है, जबकि चीन, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे देशों में यह अनुपात 75 प्रतिशत तक है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पहली बार पूंजी का आवंटन विशेष रूप से उच्च जोखिम और उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं के लिए किया जा रहा है ताकि देश में साहसिक प्रयोगों को वित्तीय सहायता मिल सके। उन्होंने कहा कि सरकार शोध कार्यों में सुगमता बढ़ाने पर भी ध्यान दे रही है, जिससे भारत में नवाचार का आधुनिक ढांचा (PM Research Innovation Fund) अधिक प्रभावी रूप से विकसित हो सके। इसके लिए वित्तीय नियमों और सरकारी खरीद नीतियों में कई अहम सुधार किए गए हैं ताकि प्रयोगशालाओं में तैयार प्रोटोटाइप को जल्दी से बाजार तक लाया जा सके।
प्रधानमंत्री ने नीति निर्माताओं और वैज्ञानिक समुदाय से आह्वान किया कि वे विज्ञान और नवाचार को जन-कल्याण से सीधे जोड़ें। उन्होंने कहा कि “अब समय है कि विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित न रहे, बल्कि समाज और उद्योग के हर स्तर तक पहुंचे।” उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के वैज्ञानिकों को खाद्य सुरक्षा से आगे बढ़कर पोषण सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि क्या भारत वैश्विक कुपोषण से निपटने के लिए नई पीढ़ी की बायोफोर्टिफाइड फसलें विकसित कर सकता है? क्या देश ऐसे सस्ते मिट्टी संवर्धक और जैव उर्वरक तैयार कर सकता है जो रासायनिक उर्वरकों के विकल्प बन सकें? प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वच्छ ऊर्जा भंडारण और सस्ती बैटरियों के क्षेत्र में भी नवाचार की अपार संभावनाएं हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि हमें उन महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान करनी होगी जहां भारत अभी भी आयात पर निर्भर है और आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
कार्यक्रम में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय कुमार सूद, नोबेल पुरस्कार विजेता सर आंद्रे गीम समेत कई देशी-विदेशी वैज्ञानिक और नीति विशेषज्ञ उपस्थित रहे।
प्रधानमंत्री की इस घोषणा को विशेषज्ञों ने भारत के अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक निर्णायक मोड़ बताया है। उनका मानना है कि इस कोष से देश में विज्ञान और उद्योग के बीच साझेदारी और सशक्त होगी तथा भारत विश्व के अग्रणी नवाचार केंद्रों में शामिल हो सकेगा।
