17 मार्च 2025 :
पंचांग के अनुसार रंग पंचमी का पर्व (Rang Panchami 2025 Significance) होली के लगभग पांच दिन बाद मनाया जाता है। यह पर्व भारत के कई हिस्सों जैसे मध्य प्रदेश राजस्थान मथुरा-वृन्दावन आदि में लोकप्रिय है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता पृथ्वीलोक पर आकर रंग खेलते हैं। इस बार यह त्योहार बुधवार 19 मार्च को मनाया जा रहा है।
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली पंचमी तिथि पर रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार काफी हद तक रंगों के त्योहार यानी होली से मेल खाता है, क्योंकि इसमें भी रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन पर देवी-देवताओं को रंग-गुलाल अर्पित किया जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि रंग पंचमी (Rang Panchami History) की पौराणिक कथा।
प्रचलित पौराणिक कथा के मुताबिक, देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव ध्यान में लीन रहने लगे। तब सभी देवताओं के अनुरोध पर कामदेव ने शिव जी को ध्यान से जगाने की कोशिश की। कामदेव के द्वारा भगवान शिव की तपस्या में विघ्न डालने के कारण वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया।
इस पर कामदेव की पत्नी देवी रति व अन्य देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित करने का आश्वासन दिया। इस घटना से प्रसन्न होकर सभी देवी-देवता रंगोत्सव मनाने लगे। तभी से रंग पंचमी मनाने की परंपरा शुरू हुई।
इसलिए भी खास है रंग पंचमी
कुछ मान्यताओं के अनुसार, रंग पंचमी का दिन भगवान कृष्ण और राधा रानी जी को अर्पित माना जाता है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर द्वापर युग में श्री कृष्ण और राधा जी ने एक-दूसरे के साथ रंगोत्सव मनाया था। इसी कारण इस दिन को कृष्ण पंचमी तथा देव पंचमी भी कहा जाता है।
राधा-कृष्ण जी की साथ में पूजा करने का विशेष महत्व माना गया है, इससे साधक को प्रेम संबंधों में मजबूती आती है। साथ ही इस दिन पर अपने-अपने आराध्य देव को भी रंग अर्पित किया जाता है। इस दिन पर हवा में गुलाल उड़ाया जाता है और यह माना जाता है कि जिस भी व्यक्ति पर यह रंग आकार गिरता है, उसे देवी-देवताओं की विशेष कृपा मिलती है।