Supreme Court on Waqf Law का फैसला बना चर्चा का विषय
Supreme Court on Waqf Law के हालिया अंतरिम आदेश ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। अदालत ने वक्फ कानून की कुछ धाराओं पर रोक जरूर लगाई, लेकिन साथ ही वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता (Autonomy of Waqf Board) को भी कायम रखा। इस फैसले को इस्लामिक विद्वानों ने स्वागत योग्य बताया है और कहा है कि यह निर्णय किसी की हार या जीत नहीं बल्कि संतुलन की ओर एक कदम है।
वक्फ कानून पर कोर्ट की अहम टिप्पणियां
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ए. जॉर्ज मसीह की पीठ ने Supreme Court on Waqf Law पर सुनवाई करते हुए कहा कि जिला मजिस्ट्रेट को सर्वोच्च नहीं माना जा सकता। अदालत ने साफ किया कि वक्फ संपत्ति का अधिकार वक्फ बोर्ड के पास ही रहेगा। वहीं, वक्फ बोर्ड के CEO के लिए मुस्लिम होना अनिवार्य तो है, लेकिन गैर मुस्लिम होने पर भी रोक नहीं है।
इस्लामिक विद्वानों ने फैसले का किया स्वागत
इतिहासकार और इस्लामिक मामलों के जानकार सैयद उबैदुर्रहमान ने कहा कि “कलेक्टर की भूमिका को नकार कर वक्फ बोर्ड की स्वतंत्रता (Waqf Board Autonomy) को बरकरार रखा गया है, यह स्वागत योग्य है।” उनके अनुसार वक्फ हमेशा से मुसलमानों का धार्मिक मामला रहा है और अदालत ने इसी परंपरा को मान्यता दी।
संशोधित वक्फ कानून की पृष्ठभूमि
वक्फ कानून का यह संशोधन 1995 के प्रावधानों में बदलाव के लिए लाया गया था। अगस्त 2024 में लोकसभा में पेश हुए बिल को बाद में संसदीय समिति को सौंपा गया। अप्रैल 2025 में इसे संशोधन अधिनियम (Waqf Amendment Act 2025) का रूप दिया गया। इसमें महिलाओं की भागीदारी और गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति जैसे बिंदु जोड़े गए थे, जिन पर बाद में विवाद खड़ा हुआ।
‘Waqf by User’ पर भी साफ हुई स्थिति
सबसे बड़ी अड़चन ‘Waqf by User ’ की थी। यदि कोई संपत्ति लंबे समय से वक्फ बोर्ड के पास है तो उसे वक्फ संपत्ति ही माना जाएगा। अदालत ने इस परंपरा को कायम रखते हुए कहा कि नामित अधिकारी की रिपोर्ट अंतिम नहीं मानी जाएगी। इससे उन हजारों संपत्तियों पर विवाद खत्म हो सकता है, जिनके कागज तो नहीं हैं लेकिन वे पीढ़ियों से वक्फ के अधीन हैं।
सियासी बयानबाजी भी तेज
वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राजनीतिक दलों के बीच टकराव का मुद्दा भी बन गया है। एक पक्ष इसे “संतुलित निर्णय” बता रहा है तो दूसरा इसे “राजनीतिक समझौता” करार दे रहा है। हालांकि, वरिष्ठ वकीलों और विद्वानों का मानना है कि यह आदेश किसी पक्ष को हराने या जिताने के बजाय दोनों के हितों को साधने की कोशिश है।