सीजी भास्कर, 01 सितम्बर |
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सहायक प्राध्यापक भर्ती से जुड़ी एक अहम याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कर दिया है
कि किसी भी पद पर दिव्यांग अभ्यर्थियों का आरक्षण तय करने का अधिकार राज्य सरकार और नियुक्ति करने वाली संस्था के पास है।
कोर्ट ने याचिका की मांग खारिज की
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में कहा कि नियोक्ता ही यह तय कर सकता है कि किसी पद के लिए कौन-सी दिव्यांग श्रेणी उपयुक्त होगी।
इसलिए चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद कोई भी उम्मीदवार रोस्टर या आरक्षण को चुनौती नहीं दे सकता। इसी आधार पर कोर्ट ने दृष्टिहीन और कम दृष्टि वाले अभ्यर्थियों के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
मामला क्या है?
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (PSC) ने साल 2019 में सहायक प्राध्यापक के 1384 पदों पर भर्ती निकाली थी। इसमें वाणिज्य विषय के 184 पद भी शामिल थे। इसी दौरान 23 फरवरी 2019 को जारी एक आदेश में दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए पदों की संख्या में संशोधन किया गया।
रायगढ़ की सरोज क्षेमनिधि ने इस संशोधन को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सरोज ने परीक्षा और इंटरव्यू पास किया, लेकिन चयन सूची में जगह नहीं मिली।
उनका आरोप था कि PSC ने दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के लिए 2% आरक्षण का पालन नहीं किया, जो दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के खिलाफ है।
खुद रखी अपनी दलील
सुनवाई के दौरान सरोज के वकील ने केस से नाम वापस ले लिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पैरवी खुद की। सरोज का कहना था कि वाणिज्य विषय में भी दृष्टिहीन और कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों के लिए आरक्षण होना चाहिए।
सरकार ने दी दलील
राज्य सरकार और PSC की ओर से कहा गया कि कला संकाय में दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए पहले से आरक्षण लागू है। लेकिन वाणिज्य और विज्ञान विषयों में कार्य की प्रकृति ऐसी है, जहां दृष्टिहीन श्रेणी के अभ्यर्थियों को समायोजित करना संभव नहीं है। इसके बदले सरकार ने एक हाथ और एक पैर दिव्यांग श्रेणी को वाणिज्य विषय में आरक्षण दिया है।