सीजी भास्कर, 02 मई : छत्तीसगढ़ सरकार की धान नीलामी (Dhan Ki Nilami) योजना एक बार फिर विफल हो गई है। इससे पहले पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार ने भी धान की नीलामी कराने की कोशिश की थी, लेकिन उचित मूल्य न मिलने के कारण योजना सफल नहीं हो सकी थी। नीलामी में रूचि की कमी के चलते गोदामों में रखा धान खराब होने की कगार पर पहुंच गया था। बताया जाता है कि यह खराब धान सरगुजा के जंगलों में हाथियों को खिलाने के लिए फेंका गया था, लेकिन हाथियों ने भी इसे खाने से इनकार कर दिया था।
इसी खराब स्टॉक को अब “धान 23-24” के नाम से पहचाना जा रहा है, जिसकी मिलिंग वर्तमान में हो रही है। इस धान से तैयार चावल को पहले FCI (भारतीय खाद्य निगम) ने लेने से इनकार कर दिया था, लेकिन अब नान (नागरिक आपूर्ति निगम) द्वारा इसे लिया जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को अब 2024-25 के धान (Dhan Ki Nilami) की मिलिंग कर उसे खुले बाजार (ओपन मार्केट) में बेचना चाहिए। छत्तीसगढ़ के चावल की मांग देशभर के महानगरों में बढ़ रही है, यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी इसकी पूछ है। ऐसे में ओपन मार्केट बिक्री से सरकार को बेहतर मूल्य मिल सकता है और घाटा भी कम हो सकता है।
हालांकि, इस वर्ष कस्टम मिलिंग दरों को लेकर राइस मिलर्स की एक माह लंबी हड़ताल भी एक बड़ी बाधा रही, जिससे मिलिंग प्रक्रिया प्रभावित हुई। सरकार यदि समय पर मिलिंग सुनिश्चित कर पाए, तो न सिर्फ बिजली खपत बढ़ेगी, जिससे बिजली कंपनियों को लाभ होगा, बल्कि जीएसटी समेत अन्य टैक्स के रूप में भी सरकार को राजस्व प्राप्त होगा। समय रहते यदि सरकार रणनीति बदले तो न सिर्फ आर्थिक नुकसान से बचा जा सकता है, बल्कि राज्य के चावल उद्योग को भी नई गति मिल सकती है।