सीजी भास्कर, 26 जुलाई : सरकार ने जमीन की रजिस्ट्री के साथ स्वतः नामांतरण की प्रक्रिया जून से शुरू कर दी हो, लेकिन किसानों की वास्तविक समस्या का हल अब तक नहीं हो पाया है। ऋण पुस्तिका (पट्टा) के लिए न कोई स्पष्ट गाइडलाइन है, न तय प्रक्रिया, जिस कारण किसानों को तहसील व न्यायालयों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। नई व्यवस्था के तहत तीन जून से जमीन की रजिस्ट्री होते ही नामांतरण स्वतः हो रहा है, लेकिन इसके बाद अगला जरूरी दस्तावेज ऋण पुस्तिका पाने के लिए किसानों को महीनों तक इंतजार करना पड़ रहा है। बिना ऋण पुस्तिका के न तो बैंक से कर्ज मिल पा रहा है, न सहकारी समिति में पंजीयन हो रहा और न ही बीज-खाद का लाभ मिल पा रहा है।
तहसीलदार-पटवारी भी असमंजस में
कोई स्पष्ट आदेश या गाइडलाइन न होने के कारण कई तहसीलदार और पटवारी ऋण पुस्तिका जारी करने से इन्कार कर रहे हैं। कुछ मामलों में तो किसानों को न्यायालय में अलग से आवेदन करने की सलाह दी जा रही है। इससे किसानों का समय और श्रम दोनों बर्बाद हो रहा है।
रायपुर में तीन हजार, प्रदेश में आंकड़ा 50 हजार पार
राजधानी में ही 3,000 से अधिक किसानों को रजिस्ट्री के बावजूद ऋण पुस्तिका नहीं मिली है। पूरे प्रदेश की बात करें तो 50,000 से अधिक खरीदारों को नई जमीन के पट्टे नहीं मिल पाए हैं। इनमें से अधिकतर मामले कृषि भूमि की खरीद से जुड़े हैं।
पुराना पट्टा रखने वाले लाभ में, नए खरीददार परेशान
जिन किसानों ने केवल कुछ हिस्सा जमीन का बेचा है, उनके पास पुराना ऋण पुस्तिका होने के कारण उन्हें दिक्कत नहीं हो रही। लेकिन नई जमीन खरीदने वाले किसान न तो बैंक में खाता खोल पा रहे, न कर्ज ले पा रहे, और न ही सहकारी समितियों में खाद-बीज के लिए पंजीयन करा पा रहे हैं।
अफसरों को नहीं वास्तविक स्थिति की जानकारी
राजस्व विभाग के अफसरों को यह जानकारी ही नहीं कि नामांतरण के बाद भी ऋण पुस्तिका के लिए अलग से आवेदन करना पड़ रहा है। उन्हें लगता है कि आनलाइन ही सब प्रक्रिया पूर्ण हो रही है, जबकि जमीनी हकीकत इससे उलट है।
वर्जन
राज्य के डायरेक्ट्रेट में ऋण पुस्तिकाएं पर्याप्त मात्रा में हैं। जिलों को डिमांड के अनुसार भेजी जा रही हैं। जल्द ही ऋण पुस्तिका की आनलाइन व्यवस्था लागू की जाएगी।
टंकराम वर्मा, राजस्व मंत्री