सीजी भास्कर, 13 अगस्त |
रायपुर/कबीरधाम। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए 8 साल के बच्चे की कस्टडी उसके मामा के पास ही रहने का आदेश दिया है। मां की मौत के बाद से बच्चा मामा के साथ रह रहा था। फैमिली कोर्ट ने पहले ही मामा को कस्टडी दे दी थी, जिसे पिता ने चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पिता की अपील खारिज कर दी।
क्या है पूरा मामला?
कबीरधाम निवासी तरण सिंह की पत्नी रागिनी सिंह का 12 मार्च 2017 को प्रसव के कुछ दिनों बाद निधन हो गया। इसके बाद से नवजात अपने मामा ललित सिंह के साथ रह रहा था। अब बच्चा 8 साल का हो चुका है।
ललित सिंह ने फैमिली कोर्ट में गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के तहत बच्चे की कस्टडी की मांग की। उनका तर्क था कि पिता ने पत्नी की मौत के एक साल बाद दूसरी शादी कर ली और उस रिश्ते से एक बेटी भी है। इस दौरान पिता ने बेटे को अपने पास लाने की कोई कोशिश नहीं की।
फैमिली कोर्ट का फैसला
फैमिली कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर बच्चे की कस्टडी मामा को सौंप दी। कोर्ट का मानना था कि बच्चा बचपन से मामा के साथ है और वहां सुरक्षित है।
पिता की हाईकोर्ट में अपील
पिता ने फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने कहा कि वह स्वाभाविक अभिभावक हैं और बेटे की बेहतर परवरिश कर सकते हैं। वहीं मामा ने भी अपना पक्ष रखते हुए कहा कि बच्चा उनके साथ सुरक्षित और सहज है।
हाईकोर्ट का निर्णय
जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस ए.के. प्रसाद की डिवीजन बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पाया कि पिता ने 8 साल में कभी बेटे को अपने पास लाने की कोशिश नहीं की। बच्चा अब सौतेली मां के साथ रहने में असहज महसूस कर सकता है।
इस आधार पर हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा और पिता की अपील खारिज कर दी।
पिता को दिए गए अधिकार
हालांकि, हाईकोर्ट ने पिता को बेटे से संपर्क का अधिकार दिया है—
- हर शनिवार-रविवार एक घंटे की वीडियो कॉल या फोन पर बातचीत
- 2 हफ्ते से अधिक की छुट्टियों में 5-10 दिन साथ रहने का मौका
- त्योहारों पर मिलने और समय बिताने की अनुमति
कोर्ट ने मामा को निर्देश दिया कि वह मुलाकात में कोई रुकावट न डालें और बच्चे का कल्याण सर्वोच्च प्राथमिकता रहे।