सीजी भास्कर, 14 सितंबर। शहर के एक सरकारी विद्यालय में अचानक ऐसा खुलासा हुआ जिसने न सिर्फ शिक्षा जगत को हिलाकर रख दिया बल्कि आम नागरिकों के बीच भी सनसनी फैला दी। वर्षों से जिन कक्षाओं में विद्यार्थी बैठकर पढ़ते थे, वहां के फर्नीचर को कबाड़ घोषित कर गुपचुप तरीके से बाहर भेजा जा रहा था। मामला जैसे ही सामने आया तो जांच की बारीकियों ने प्रशासन को भी चौंका दिया। हर तरफ एक ही सवाल उठ रहा है कि आखिरकार इतना बड़ा (School Furniture Scam) संभव कैसे हुआ और इसकी अनुमति किसने दी?
तीन दिनों से टुण्डरा नगर के गलियारों में फुसफुसाहट चल रही थी कि शासकीय विद्यालय का फर्नीचर रहस्यमय तरीके से गायब हो रहा है। शनिवार की दोपहर जब कुछ लोगों ने ट्रक में लदा सामान रोक लिया तो हकीकत सबके सामने आ गई। नगरवासियों की शिकायत ने शिक्षा विभाग में भूचाल ला दिया। अब इस पूरे मामले की गुत्थी सुलझाने में जिला प्रशासन जुट गया है। आरोप गंभीर हैं और कड़ी कार्रवाई की आहट पहले ही सुनाई देने लगी है।
बलौदाबाजार जिले के टुण्डरा क्षेत्र में स्थित शासकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय से जुड़ा यह मामला प्रशासन के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। 13 सितम्बर को आई शिकायत के बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने तुरंत तहसीलदार, विकासखंड शिक्षा अधिकारी और अन्य अधिकारियों की संयुक्त जांच टीम गठित की। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि 8 सितम्बर को शाला प्रबंधन एवं विकास समिति की बैठक में कबाड़ घोषित कर पुराने भवन और फर्नीचर बेचने का निर्णय लिया गया था। इसी आधार पर प्रभारी प्राचार्य रमेश बंजारे ने निजी विद्यालयों को टेबल-कुर्सियां बेच डालीं। यही वह बिंदु था जहां से पूरा (School Furniture Scam) उजागर हुआ।
जांच टीम ने मौके पर भौतिक सत्यापन किया और पाया कि ज्ञान अमृत विद्यालय को 67 नग तथा धविका पब्लिक स्कूल शिवरीनारायण को 40 नग टेबल-कुर्सियां बेची गई थीं। तीन पिकअप में भरकर जब यह फर्नीचर निकाला जा रहा था, तभी ग्रामीणों ने रोका और मामले की पोल खुल गई। जब्त सामान को तत्काल स्कूल परिसर में एक कमरे में सुरक्षित सीलबंद कर दिया गया और पंचनामा तैयार किया गया। सीलबंद ताले की चाबी भी जांच दल ने अपने कब्जे में रख ली।
जांच रिपोर्ट ने प्रशासन को चौंका दिया। समिति और प्रभारी प्राचार्य द्वारा बेचे गए फर्नीचर को पूरी तरह उपयोग योग्य और अच्छे हाल में पाया गया। इसे कबाड़ घोषित करना गलत साबित हुआ। सबसे अहम तथ्य यह रहा कि अनुपयोगी सामग्री के निस्तारण की निर्धारित प्रक्रिया और उच्च कार्यालय से अनुमति लेना पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया था। यानी पूरा मामला सीधा-सीधा नियम उल्लंघन और पद के दुरुपयोग का था, जिसने (School Furniture Scam) को गंभीर रंग दे दिया।
कलेक्टर दीपक सोनी ने जैसे ही इस प्रकरण की रिपोर्ट देखी, उन्होंने इसे गंभीर लापरवाही और सेवा आचरण नियम 1965 का स्पष्ट उल्लंघन बताया। उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देशित किया कि दोषी प्राचार्य के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। आदेशानुसार निलंबन की कार्यवाही का प्रस्ताव शासन को भेज दिया गया है। प्रशासन का यह कदम स्पष्ट संदेश देता है कि सरकारी संसाधनों की बंदरबांट या हेराफेरी को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
यह पूरा घटनाक्रम अब पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर विद्यालय प्रबंधन समिति ने ऐसे निर्णय को कैसे मंजूरी दी और क्यों वर्षों से पढ़ाई के लिए इस्तेमाल हो रहे फर्नीचर को कबाड़ घोषित किया गया? क्या यह केवल एक व्यक्ति की गलती है या इसमें और लोग भी शामिल थे? इन सवालों का जवाब आने वाले दिनों में जांच से साफ होगा। फिलहाल इतना तय है कि जिला प्रशासन ने एक कठोर उदाहरण पेश किया है और भविष्य में ऐसे किसी भी (School Furniture Scam) के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने का संकेत दिया है।