मुगल बादशाह अकबर (Akbar ki Taj Begum) की कई रानियां थीं, परंतु उनमें से एक का जीवन इतिहास में अध्यात्म की नई कहानी लिख गया। ताज बेगम या ताज बीबी—एक ऐसी महिला, जो जन्म से मुस्लिम थीं, लेकिन जिनका हृदय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब गया। उन्होंने धर्म से ऊपर उठकर प्रेम और भक्ति की राह चुनी।
जब गोवर्धन यात्रा ने बदल दी तकदीर
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, ताज बेगम का जन्म 17वीं सदी में महावन के किलेदार पद्न खान के घर हुआ था। विवाह के बाद जब वे अकबर के साथ गोवर्धन पहुंचीं, तभी उनकी मुलाकात हुई श्री विट्ठलनाथ जी (Krishna Bhakti) से। इसी मुलाकात ने ताज बेगम के जीवन की दिशा ही नहीं, उनके पूरे अस्तित्व को बदल दिया। वे श्रीकृष्ण के प्रेम में इस कदर खो गईं कि दरबार की रौनकें उन्हें फीकी लगने लगीं।
वृंदावन की गलियों में ताज बेगम की रूहानी तान
ताज बेगम ने वृंदावन और गोकुल में निवास करना शुरू किया, जहां वे श्रीकृष्ण के पद और भजन रचने लगीं। उनकी कविताओं में प्रेम, विरह और समर्पण की ऐसी गहराई थी कि हर शब्द श्रीकृष्ण के चरणों में भक्ति बनकर बहता था।
उन्होंने कहा था—
“हौं तो तुर्कानी पै हिंदुआनी ह्वै रहूंगी मैं।”
(अर्थात्, मैं जन्म से तुर्कानी हूं, पर रहूंगी हिंदुस्तानी।)
कुरान से भक्ति की ओर – एक रानी का आध्यात्मिक सफर
मुस्लिम समाज के विरोध के बावजूद ताज बेगम ने कुरान (Taj Begum Krishna Bhakti) पढ़ना और नमाज़ अदा करना छोड़ दिया। उन्होंने धर्म की सीमाओं से परे जाकर मानवता और प्रेम को अपनाया। उनके अनुसार, सच्चा धर्म वही है जिसमें ‘प्रेम’ सर्वोपरि हो।
गोकुल में समाधि, भक्ति का अमर प्रतीक
आज भी गोकुल के रमन रेती आश्रम के पास उनकी समाधि स्थित है। वहाँ अंकित सवैया उनके विचारों की झलक देता है। वह समाधि सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि इस बात की याद दिलाती है कि भक्ति के आगे कोई धर्म, जाति या पहचान नहीं टिकती।
