सीजी भास्कर | 13 नवंबर 2025 महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल मेलघाट इलाके में कुपोषण (Malnutrition Crisis) से हो रही लगातार मौतों ने एक बार फिर शासन-प्रशासन की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। “Child Malnutrition in Maharashtra” अब सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि मानवता की सबसे बड़ी त्रासदी बन चुकी है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस गंभीर स्थिति पर राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि “यह मुद्दा आंकड़ों का नहीं, बल्कि इंसानियत के अस्तित्व का सवाल है।”
“Child Malnutrition in Maharashtra” – अदालत ने बताया भयावह हालात
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदेश पाटिल की खंडपीठ ने जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि जून 2025 से अब तक 65 बच्चों की मौत सिर्फ कुपोषण (Child Hunger Deaths) के कारण हुई है।
अदालत ने कहा — “राज्य सरकार 2006 से इस मुद्दे पर आदेश प्राप्त कर रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस सुधार नहीं दिखा। कागजों पर सब कुछ ठीक है, जबकि ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही है।”
बेंच ने राज्य के रुख को “बेहद लापरवाह और असंवेदनशील” बताते हुए चेताया कि यदि यही स्थिति रही तो आने वाले समय में मेलघाट जैसे क्षेत्र सिर्फ ‘मानव त्रासदी के प्रतीक’ बनकर रह जाएंगे।
कुपोषण से बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन?
हाई कोर्ट ने सरकार से सीधा सवाल किया — “जब वर्षों से चेतावनी दी जा रही है, तो कुपोषण से होने वाली मौतें क्यों नहीं रुक रहीं?”
अदालत ने जन स्वास्थ्य, आदिवासी विकास, महिला एवं बाल कल्याण और वित्त विभाग के प्रधान सचिवों को 24 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है। साथ ही कहा गया कि चारों विभाग अब तक इस समस्या से निपटने के लिए क्या-क्या कदम उठा चुके हैं, इसका विस्तृत ब्यौरा कोर्ट में प्रस्तुत करें।
यह टिप्पणी न सिर्फ सरकार की जवाबदेही (Government Accountability in Nutrition Crisis) पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि सिस्टम की सुस्ती को भी उजागर करती है।
डॉक्टरों की कमी और सरकारी लापरवाही पर कोर्ट सख्त
बेंच ने कहा कि सरकार जन स्वास्थ्य Public Health Negligence) के मुद्दे को “बहुत हल्के में” ले रही है, जबकि यह एक मानवीय संकट है। अदालत ने सुझाव दिया कि मेलघाट जैसे आदिवासी और दुर्गम इलाकों में काम करने वाले डॉक्टरों को अतिरिक्त वेतन या प्रोत्साहन राशि दी जानी चाहिए, ताकि वे वहां काम करने के लिए तैयार हों।
जजों ने कहा कि “स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता और डॉक्टरों की कमी किसी भी बच्चे की मौत का कारण नहीं बननी चाहिए।”
मेलघाट की जमीनी सच्चाई – भूख से हारती ज़िंदगियां
पूर्वी महाराष्ट्र के अमरावती जिले का मेलघाट इलाका (Melghat Malnutrition Deaths) पिछले दो दशकों से कुपोषण, मातृ-शिशु मृत्यु दर और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के लिए जाना जाता है।
हालात यह हैं कि कई गांवों में आज भी एक ही डॉक्टर सैकड़ों मरीजों को देखता है, और पोषण आहार की योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं।
जून से नवंबर 2025 के बीच हुई 65 मौतों ने साफ कर दिया है कि सरकारी रिपोर्टें और वास्तविकता में जमीन-आसमान का फर्क है।
मानवता के अस्तित्व का सवाल
अदालत ने कहा कि यह सिर्फ सरकारी नाकामी का मामला नहीं, बल्कि मानव संवेदनाओं के ह्रास की कहानी है।
यदि बच्चे भूख से मर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि व्यवस्था कहीं न कहीं अंधी, बहरी और बेबस हो चुकी है। अदालत ने कहा कि अब समय आ गया है कि सरकार आंकड़ों की नहीं, ज़िंदगियों की गिनती करे।
“Child Malnutrition in Maharashtra” अब सरकार के लिए सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक मोरल इमरजेंसी (Moral Emergency) बन चुकी है।
बॉम्बे हाई कोर्ट की सख्ती के बाद उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार अब सिर्फ जवाब नहीं, बल्कि ठोस एक्शन दिखाएगी।
क्योंकि जब एक भी बच्चा भूख से मरता है — तो पूरी व्यवस्था मर जाती है।
