सीजी भास्कर 14 नवम्बर बिहार विधानसभा चुनाव के ताज़ा रुझानों में एनडीए आराम से आगे बढ़ रहा है, लेकिन सबसे चौंकाने वाला कदम जेडीयू (“JDU CM Claim”) की ओर से आया है। नतीजों के अंतिम आंकड़े आने से पहले ही पार्टी ने साफ कर दिया कि गठबंधन का नेतृत्व कौन संभालेगा। जेडीयू ने आधिकारिक तौर पर संदेश दिया कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे, चाहे सीटों का संतुलन जो भी बने।
बीजेपी से पहले JDU ने किया ‘पोस्ट-रिजल्ट मूव’
जहां एनडीए में सभी दल स्थिति स्पष्ट होने का इंतज़ार कर रहे थे, वहीं जेडीयू ने किसी देरी के बिना अपनी रणनीति सामने रख दी। पार्टी ने अपने बयान में कहा कि नीतीश कुमार पहले भी राज्य के नेतृत्वकर्ता रहे हैं और आगे भी वही रहेंगे—यह बयान साफ दर्शाता है कि जेडीयू इस बार किसी तरह की अनिश्चितता नहीं छोड़ना चाहती।
पार्टी के इस स्टैंड को जेडीयू समर्थक ‘पॉलिटिकल क्लैरिटी’ के तौर पर देख रहे हैं, जबकि राजनीतिक जानकार इसे एक सोची-समझी स्क्रिप्ट मान रहे हैं।
सीटों में बढ़त BJP के पास, लेकिन दांव JDU का भारी
रुझानों के अनुसार बीजेपी की सीटें जेडीयू से अधिक दिखाई दे रही हैं, लेकिन इतने भर से समीकरण नहीं बदलते। जेडीयू की ओर से लगातार यह संदेश दिया गया कि गठबंधन की बुनियाद नीतीश कुमार के नेतृत्व पर ही टिकी हुई है। यही कारण है कि पार्टी ने सीटों की गिनती से पहले ही अपनी पोज़ीशन मजबूत कर ली है (“Political Claim”).
बीजेपी की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है—और यही चुप्पी इस राजनीतिक कहानी को और दिलचस्प बना रही है।
क्या BJP रखेगी कोई नई शर्त?
चर्चा इस बात की भी चल रही है कि क्या बीजेपी, जो फिलहाल ज़्यादा सीटों पर बढ़त में है, मुख्यमंत्री के नाम पर कुछ नया संकेत दे सकती है। हालांकि प्रदेश की राजनीतिक स्थिति यह भी इशारा करती है कि कार्यशैली और प्रशासनिक अनुभव के मामले में नीतीश कुमार का विकल्प ढूंढ़ना आसान नहीं।
कई विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा ने भले ही चुनाव से पहले चेहरे का नाम सीधे नहीं लिया हो, लेकिन गठबंधन में स्थिरता बनाए रखने के लिए वे पुराने फैसले पर कायम ही रहेंगे।
जेडीयू की समय से पहले की घोषणा क्यों अहम?
जेडीयू की यह घोषणा केवल एक ‘स्टेटमेंट’ नहीं, बल्कि सत्ता समीकरण को स्थिर रखने की कोशिश है। चुनावी माहौल में पहले से ही कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे—ऐसे में जेडीयू का यह सार्वजनिक दावा एनडीए के भीतर भावनात्मक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर संदेश देने जैसा है।
कुछ नेताओं का मानना है कि इस प्रकार के “Early Political Assertion” से गठबंधन के भीतर किसी भी संभावित गलतफहमी को रोका जा सकता है।
