Bastar Maoist Violence : दक्षिण बस्तर के जंगलों में माओवादी हिंसा का दायरा अब बेहद सिमट चुका है। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, संगठन का आधार ढांचा टूटने के बाद अब सिर्फ कुछ कमांडर—Barse Deva और Papa Rao—सीमावर्ती जंगलों में छिपकर सक्रियता बनाए हुए हैं। इनकी गतिविधियाँ भी अब सीमित क्षेत्रों में सिमटने लगी हैं, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि बस्तर में लंबे समय से जारी माओवादी तंत्र अब अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है।
2026 मार्च तक ‘नक्सल-मुक्त बस्तर’ लक्ष्य तय
सुरक्षा बलों ने एक व्यापक रणनीति तैयार की है जिसके तहत 2026 मार्च तक पूरे बस्तर को नक्सल प्रभाव से मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना के तहत अब तक 200 से अधिक स्थायी और अस्थायी कैंप स्थापित किए जा चुके हैं। सर्च ऑपरेशन में सटीक समन्वय और स्थानीय फोर्सेज का संयुक्त दबाव, माओवादियों की पकड़ लगातार कमजोर कर रहा है।
शीर्ष नेतृत्व ध्वस्त, कमांडरों के पास विकल्प कम
CRPF और DRG के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि माओवादी संगठन का शीर्ष नेतृत्व बिखर जाने के बाद अब ज़्यादातर सीनियर कैडर्स या तो आत्मसमर्पण कर चुके हैं या संगठन छोड़ चुके हैं। जंगलों में छिपे बचे हुए कमांडरों पर अब भारी दबाव है और वे अपने अंतिम विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि अब “माओवाद का कोर ढांचा” टूट चुका है और बचे हुए कैडरों की गतिविधियों की निगरानी बेहद करीबी से की जा रही है।
सरकार का संदेश—“समय अभी है, हथियार डाल दें”
राज्य स्तर पर यह संदेश साफ तौर पर दिया जा रहा है कि जो माओवादी अब भी हथियारबंद हैं, वे आत्मसमर्पण का अवसर चुन सकते हैं। अधिकारियों की माने तो अगर वे इस मौके को गंवाते हैं, तो आगे की कार्रवाई “और कड़ी तथा निर्णायक” होगी। प्रशासन का कहना है कि जंगलों में दबाव लगातार बढ़ रहा है और भविष्य का रास्ता सिर्फ दो ही हैं—समर्पण या फिर सख्त कार्रवाई।


