सीजी भास्कर, 10 दिसंबर। संतुलित मानसून ने खेती-किसानी को इस बार नई गति दी है, लेकिन इसकी सीधी चुनौती उर्वरक क्षेत्र के सामने खड़ी हो गई है। मांग में अप्रत्याशित वृद्धि ने आयात और घरेलू आपूर्ति दोनों पर भारी दबाव बना दिया है।
फर्टिलाइजर एसोसिएशन आफ इंडिया (एफएआई) का मानना है कि 2025-26 में देश का उर्वरक आयात 2.23 करोड़ टन तक पहुंच सकता है, जो पिछले साल से लगभग 41 प्रतिशत अधिक होगा (Fertilizer Import Surge India)। यह उछाल संकेत देता है कि देश में खाद की उपलब्धता को लेकर एक नया दबाव चक्र शुरू हो चुका है।
एफएआई ने वार्षिक सेमिनार से पहले मंगलवार को प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि अप्रैल-अक्टूबर के दौरान भारत 1.445 करोड़ टन उर्वरक आयात कर चुका है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 69 प्रतिशत की भारी वृद्धि है (Fertilizer Import Surge India)। बुधवार से शुरू होने वाले दो दिवसीय सेमिनार में उर्वरक सुरक्षा, मूल्य स्थिरता, आयात निर्भरता और ग्रीन अमोनिया जैसी उभरती तकनीकों पर चर्चा होगी। विशेषज्ञों के अनुसार बेहतर बारिश के कारण बुआई का रकबा बढ़ा है।
इससे खपत भी बढ़ी और साथ ही आयात बढ़ाने को भी मजबूर किया। एफएआई चेयरमैन एस. शंकर सुब्रमणियन का कहना है कि मांग तेजी से बढ़ने के चलते भारत को बड़े पैमाने पर वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं से अनुबंध करने पड़े हैं। सप्लाई में तत्काल कोई बाधा नहीं है, लेकिन दबाव स्पष्ट रूप से बढ़ा है।
देश में बफर स्टॉक की स्थिति भी पिछले वर्षों से बेहतर दिख रही है। नवंबर के अंत तक कुल 1.02 करोड़ टन उर्वरक का भंडार उपलब्ध था, जिसमें 50 लाख टन यूरिया, 17 लाख टन डीएपी और 35 लाख टन एनपीके शामिल हैं। खरीफ में कुछ राज्यों में स्थानीय कमी जरूर दिखी, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धता सामान्य बताई गई है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर खपत इसी गति से बढ़ती रही तो स्टॉक बनाए रखना भी चुनौती बन सकता है।
घरेलू उत्पादन में भी हल्की वृद्धि दर्ज हुई है। अप्रैल-अक्टूबर अवधि में कुल उत्पादन 2.997 करोड़ टन रहा, जबकि पिछले वर्ष 2.975 करोड़ टन था। इसमें 1.713 करोड़ टन यूरिया, 23.2 लाख टन डीएपी और 70.4 लाख टन एनपीके शामिल हैं। इसके बावजूद वार्षिक कुल मांग करीब सात करोड़ टन के आसपास है, जिसके मुकाबले घरेलू उत्पादन अभी भी तीन-चौथाई जरूरत ही पूरा करता है (Fertilizer Import Surge India)। इसी अंतर की वजह से उर्वरक आयात अनिवार्य हो गया है।
भारत ने पिछले दो महीनों में सऊदी अरब, जॉर्डन, मोरक्को, कतर और रूस जैसे देशों के साथ बड़े अनुबंध किए हैं, ताकि कच्चा माल व तैयार उर्वरक आयात बढ़ाकर निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव का असर आने वाले समय में भारत पर और गहरा पड़ सकता है।
इधर केंद्र सरकार दबाव कम करने सब्सिडी ढांचा मजबूत कर रही है। FY 2024-25 में 1.9 लाख करोड़ से अधिक की सब्सिडी दी गई, जिससे किसानों को समय पर खाद उपलब्ध कराई जा सकी। देश के 14 करोड़ से अधिक कृषि परिवारों के लिए यह सपोर्ट उत्पादन चक्र स्थिर रखने में अहम भूमिका निभा रहा है।


