सीजी भास्कर, 25 सितंबर। छत्तीसगढ़ में कोयला घोटाला और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार निलंबित अधिकारी सौम्या चौरसिया को अंतरिम जमानत दे दी है। 25 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की। सौम्या चौरसिया कोयला घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 1 साल 9 महीने से हिरासत में हैं। अदालत ने उनकी लंबी हिरासत और आरोप पत्र दाखिल न होने जैसे महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया है। सौम्या चौरसिया छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप सचिव रह चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 अक्टूबर, 2024 की तारीख निर्धारित की है।
शर्तों के साथ मिली जमानत
सौम्या ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 28 अगस्त, 2024 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी तीसरी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सूर्य कांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की पीठ ने उन्हें शर्तों के साथ अंतरिम जमानत दी और कहा कि इतने लंबे समय तक बिना आरोप पत्र दाखिल किए हिरासत में रखना अनुचित है।
निलंबित ही रहेंगी सौम्या
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना और अगली तारीख पर पक्षों को विस्तृत सुनवाई का अवसर देने के लिए, हम निर्देश देते हैं याचिकाकर्ता को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए। बशर्ते कि वह ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपयुक्त जमानत बांड दाखिल करें। साथ ही अदालत ने स्पष्ट किया कि चौरसिया की रिहाई का मतलब उनकी सरकारी सेवा में बहाली नहीं होगी। वह अगले आदेश तक निलंबित रहेंगी। चौरसिया की जमानत पर कई कड़ी शर्तें लगाई गई हैं, जिनमें ट्रायल कोर्ट की सभी सुनवाई में उपस्थित रहना, गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों से छेड़छाड़ न करना, अपना पासपोर्ट कोर्ट में जमा करना और देश छोडऩे से पहले ट्रायल कोर्ट से अनुमति लेना शामिल है।
पहले ही मिल चुकी है जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में कई महत्वपूर्ण कारकों को ध्यान में रखा जिसमें यह तथ्य भी शामिल था कि चौरसिया ने लगभग 2 साल की हिरासत का सामना किया है। उनके कुछ सह आरोपियों को पहले जमानत मिल चुकी है और उसके खिलाफ अब तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है। विशेष रूप से उच्च न्यायालय में यह देखा गया था कि अन्य आरोपियों के खिलाफ गैर जमानती वारंट निष्पादित नहीं होने के कारण ट्रायल आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
ED पर उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति उज्जवल भुइया ने ईडी के पीएमएलए मामलों में काम दोष सिद्धि दर पर गंभीर चिंता व्यक्त की। बिना आरोप पत्र दाखिल किए हिरासत की अवधि लंबी हो जाती है।अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस बी राजू से पूछताछ करते हुए न्यायमूर्ति भुइया ने कहा बिना आरोप पत्र दाखिल किए आप किसी व्यक्ति को कितने समय तक जेल में रख सकते हैं। अधिकतम सजा 7 साल है और संसद में बताया गया कि केवल 11 मामलों में पीएमएलए के तहत दोष सिद्धि हुई है। यह टिप्पणी विशेष रूप से वित्तीय अपराधों की जांच के दौरान न्याय प्रक्रियाओं की शिकायत पर सवाल उठाती है।
न्यायमूर्ति दीपंकर दत्ता ने भी सुनवाई के दौरान हैरानी जताई कि सुनवाई वारंट के निष्पादन में देरी के कारण आगे नहीं बढ़ रही है। उन्होंने सवाल किया क्या यह उचित है कि किसी को बिना ट्रायल के लंबे समय तक हिरासत में रखा जाए। वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे चौरसिया की ओर से पेश हुए।