सीजी भास्कर, 08 अक्टूबर। संभाग मुख्यालय जगदलपुर में आयोजित बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) पर्व में शामिल होकर मां दंतेश्वरी और मावली माता की डोली मंगलवार की देर रात जिले में लौटीं। जगदलपुर से आंवराभाटा स्थित विश्राम स्थल के रास्ते में जगह-जगह स्वागत सत्कार व पूजा-अर्चना के चलते सुबह लगभग 4 बजे काफिला यहां पहुंचा। देवी का स्वागत जोरदार आतिशबाजी के साथ किया गया। वहीं सशस्त्र जवानों ने हर्ष फायर कर सलामी दी। इसके बाद आंवराभाटा स्थित रात्रि विश्राम स्थल पर देवी की डोली को ठहराया गया।
दर्शन के लिए देर रात तक डटे रहे भक्त
बस्तर आराध्या देवियों की वापसी के इंतजार में यहां शाम से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। उनके लिए टेंपल कमेटी ने रायगढ़ के कलाकार मोनू ठाकुर ग्रुप के जगराता कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें कलाकारों ने भक्तिमय गीत और झांकी की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम में अतिथि के रूप में विधायक चैतराम अटामी, जिपं उपाध्यक्ष अरविंद कुंजाम, जिपं सदस्य तूलिका कर्मा, कमला नाग समेत अन्य जनप्रतिनिधि उपस्थित थे। अतिथियों के हाथों शारदीय नवरात्रि आयोजन में उत्कृष्ट कार्य करने वाले विभागों, संगठनों और व्यक्तियों को सम्मानित किया गया।
देवी का काफिला पहुंचने में हुई देरी के कारण कुछ भीड़ छंट गई, लेकिन ज्यादातर भक्त देवी की डोली (Bastar Dussehra) के आगमन तक वहीं डटे रहे। जैसे ही देवी की डोली पहुंची, जयकारों के साथ पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। दर्शन और पूजा के बाद भक्त अपने घरों को लौटे।
बुधवार शाम को मंदिर में हुई वापसी
बुधवार की शाम लगभग साढ़े चार बजे आंवराभाटा स्थित पड़ाव स्थल से देवी की डोली (Bastar Dussehra) को लेकर काफिला मंदिर की ओर रवाना हुआ। इसमें विधायक चैतराम अटामी, कलेक्टर कुणाल दुदावत, पूर्व विधायक देवती कर्मा, जिपं उपाध्यक्ष अरविंद कुंजाम, सदस्य सुलोचना कर्मा और तूलिका कर्मा समेत बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।
बाजे-गाजे और जयघोषों के बीच देवी की डोली (Bastar Dussehra) का काफिला आगे बढ़ा। जय स्तंभ चौक के पास घाट भैरम और बोदराज बाबा के पास रस्म अदायगी की गई। इसके बाद देवी की डोली मंदिर पहुंची, जहां आरती के बाद मां दंतेश्वरी और मावली माता को मंदिर में प्रवेश कराया गया।
परंपरा और आस्था का अद्भुत संगम
बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) भारत का एकमात्र पर्व है, जिसमें रावण दहन नहीं, बल्कि देवी दंतेश्वरी की आराधना की जाती है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक और जनजातीय परंपराओं का प्रतीक भी है। देवी की डोली की वापसी के साथ ही 75 दिनों तक चलने वाला यह ऐतिहासिक पर्व अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचता है।
इस वर्ष मां दंतेश्वरी की डोली के स्वागत में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। भक्तों ने कहा कि यह क्षण ‘घर की लक्ष्मी के लौटने’ जैसा शुभ संकेत है, जो पूरे क्षेत्र में समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।