Bastar Ki Anokhi Vivah Parampara: भारत की विविधता में बस्तर एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ जनजातीय संस्कृति और परंपराएँ आज भी अपनी मौलिकता और रहस्यमयी आकर्षण को बनाए हुए हैं। यहाँ की शादियाँ केवल दो लोगों का बंधन नहीं होती, बल्कि पूरे समाज का उत्सव बन जाती हैं। बस्तर की अनोखी विवाह परंपराएँ सामाजिक एकता, प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ाव की झलक दिखाती हैं।
Bastar Ki Anokhi Vivah Parampara:
भारत की विविधता में बस्तर एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ जनजातीय संस्कृति और परंपराएँ आज भी अपनी मौलिकता और रहस्यमयी आकर्षण को बनाए हुए हैं। यहाँ की शादियाँ केवल दो लोगों का बंधन नहीं होती, बल्कि पूरे समाज का उत्सव बन जाती हैं। बस्तर की अनोखी विवाह परंपराएँ सामाजिक एकता, प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ाव की झलक दिखाती हैं।
विवाह के लिए सामाजिक स्वीकृति
शादी का पहला चरण गोत्र और वंश की जाँच से शुरू होता है। यदि वर और वधू का गोत्र एक जैसा पाया जाता है तो विवाह की अनुमति नहीं दी जाती। ऐसा न करने पर आने वाली पीढ़ी में विकृति आदि का खतरा रहता है। जब समाज और परिवार इस बंधन को स्वीकार कर लेते हैं, तभी आगे की प्रक्रिया शुरू होती है। सगाई के रूप में दूल्हे का परिवार चावल, देशी शराब, पशु-पक्षी और अन्य वस्तुएँ लेकर दुल्हन के घर पहुँचता है। यह रस्म दोनों परिवारों के बीच रिश्ते की आधिकारिक घोषणा होती है।
यहाँ की विभिन्न जनजातियाँ जैसे गोंड, मुरिया, हल्बा और मारिया, शादियों को एक सामुदायिक उत्सव की तरह मनाती हैं, जहाँ प्रेम, सहमति और प्रकृति से जुड़ाव मुख्य भूमिका निभाते हैं।
आदिवासी शादियों में घोटुल की भूमिका
मुरिया और गोंड जनजाति, बस्तर की सबसे पुरानी और प्रमुख जनजातियों में से एक है, और इनकी शादियाँ ‘घोटुल’ प्रथा के इर्द-गिर्द घूमती हैं। यह जनजाति की सबसे खास सामाजिक संस्था है। यह एक तरह का युवा केंद्र होता है, जहाँ लड़के-लड़कियाँ गीत, नृत्य और सामाजिक आचार-व्यवहार सीखते हैं। कई बार यही स्थान जीवन साथी चुनने का माध्यम भी बन जाता है। घोटुल केवल मनोरंजन की जगह नहीं बल्कि आने वाले विवाह संबंधों की नींव माना जाता है। घोटुल में बिना किसी सामाजिक दबाव के यौन संबंध स्थापित करने की भी स्वतंत्रता होती है।
जनजातियों में विवाह के प्रकार। बस्तर में विवाह के कई अनोखे रूप देखने को मिलते हैं, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता को और भी खास बनाते हैं।
पारंपरिक/चढ़ विवाह
यह विवाह सबसे सामान्य माना जाता है। इसमें वर और वधू के गोत्र की जांच की जाती है ताकि सामाजिक नियमों का पालन हो सके। यदि गोत्र एक न हो तो परिवार और समाज विवाह को मंजूरी दे देते हैं। इसके बाद सगाई की रस्म होती है, जिसमें दूल्हे का परिवार चावल, देसी शराब और अन्य उपहार दुल्हन के घर ले जाता है। शादी के दिन पारंपरिक गीत, नृत्य, पैर धोने की रस्म और बुजुर्गों का आशीर्वाद इस विवाह की खासियत होती है।
ढुकू विवाह
इस विवाह में लड़की पहल करती है। जब लड़की किसी लड़के को जीवन साथी के रूप में चुन लेती है तो वह सीधे उसके घर चली जाती है। यदि लड़के का परिवार उसे स्वीकार कर ले, तो यह विवाह सामाजिक रूप से मान्य हो जाता है। यह परंपरा महिलाओं को निर्णय लेने की आज़ादी देती है और उनके चुनाव का सम्मान करती है।
लमसेना विवाह
लमसेना विवाह में लड़के को दुल्हन के घर जाकर सेवा करनी पड़ती है। वह खेतों में काम करता है, घर के कामों में हाथ बँटाता है और परिवार का भरोसा जीतता है। जब लड़की का परिवार संतुष्ट हो जाता है, तभी विवाह होता है। यह विवाह मेहनत, धैर्य और ज़िम्मेदारी की परीक्षा जैसा माना जाता है।
उधलका/अपहरण विवाह
यह विवाह कुछ हद तक अपहरण जैसा लगता है, लेकिन इसमें समाज की मंजूरी होती है। लड़का सार्वजनिक जगह से लड़की को पकड़कर अपने साथ ले जाता है। यदि लड़की आपत्ति न करे, तो बाद में लड़के का परिवार लड़की के घर उपहार या “महला” भेजता है। इसे प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है और ग्राम पंचायत इसे मान्यता देती है।
पैठूल विवाह
यह विवाह आधुनिक “लिव-इन रिलेशनशिप” जैसा है। इसमें लड़का और लड़की बिना औपचारिक विवाह के साथ रहते हैं। यदि उनका रिश्ता लंबे समय तक चलता है और दोनों परिवार इसे स्वीकार कर लेते हैं, तो विवाह मान्य माना जाता है। कई बार इस दौरान बच्चे भी हो जाते हैं, जिसे समाज आसानी से स्वीकार करता है I
विधवा पुनर्विवाह
बस्तर समाज में विधवाओं को दोबारा शादी करने की इजाज़त है। इसे “रांड मुत्ते” जैसे नामों से भी जाना जाता है। इसमें विधवा महिला अपने लिए नया जीवन साथी चुन सकती है। समाज इस विवाह को स्वीकार करता है और इसे नए जीवन की शुरुआत मानता है। यह प्रथा बस्तर की प्रगतिशील सोच और मानवीय संवेदनाओं को दर्शाती है।
पानी साक्षी विवाह
धुरवा समाज में विवाह में अग्नि की जगह पानी को साक्षी माना जाता है। वर-वधू पर पानी छिड़काया जाता है और पानी के सामने वचन लिए जाते हैं। यह परंपरा प्रकृति से गहरा जुड़ाव और जल के प्रति सम्मान दर्शाती है।
बहु-पत्नी विवाह
कुछ जनजातियों में एक पुरुष की एक से अधिक पत्नियाँ होती हैं। इसे बहुपत्नी विवाह कहते हैं। आर्थिक और सामाजिक कारणों से यह प्रथा धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन कुछ मामले आज भी देखने को मिलते हैं।
बहु-पति विवाह
यह विवाह दुर्लभ है लेकिन बस्तर की विवाह परंपराओं का हिस्सा माना जाता है। इसमें एक महिला के एक से अधिक पति हो सकते हैं। यह प्रथा केवल कुछ खास परिस्थितियों में होती है, जैसे कि परिवार में संतान न होना या आर्थिक मदद की ज़रूरत होना।
कांड़ विवाह
जनजातियों में कांड़ का मतलब तीर होता है। इसके रीति-रिवाजों को कांडबरा कहा जाता है। यह रस्म लड़कियों के विवाह से पहले की जाती है, जिसमें लड़कियों का विवाह तीर से संपन्न कराया जाता है।
दूध लौटावा विवाह
यह विवाह मुख्यतः गोंड जनजाति में होता है। इसमें ममेरे-फुफेरे भाई-बहन का विवाह किया जाता है।
पठौनी विवाह
इस विवाह की रस्में भी गोंड जनजातियों में देखी जाती हैं। इसमें लड़की बारात लेकर लड़के के घर जाती है और लड़के के घर में ही मंडप तैयार होता है और विवाह संपन्न किया जाता है।
विनिमय विवाह यह विवाह सामान्यतः
बैगा और बिरहोर जनजाति में देखी जाती है। जिसमें वर–वधू का आदान-प्रदान कर विवाह किया जाता है।