सीजी भास्कर 14 नवम्बर (Bihar Election Analysis) दोपहर तक तस्वीर साफ, NDA ने बनाई भारी बढ़त
2025 के विधानसभा चुनाव में जो नतीजे सामने आ रहे हैं, उन्होंने बिहार की राजनीति का पूरा गणित एक बार फिर बदल दिया है। दोपहर 1 बजे तक के रुझानों में एनडीए 190–199 सीटों पर आगे है, जबकि विपक्ष 50 के आंकड़े को भी छू नहीं पा रहा। यह नतीजा बिहार के राजनीतिक इतिहास को फिर से 2010 के दौर (NDA Sweep 2025) की तरफ ले जाता दिख रहा है। तब भी नीतीश कुमार और बीजेपी ने मिलकर विपक्ष को गहरा झटका दिया था।
2010 जैसा माहौल, बस किरदार बदले—संघर्ष वही
2010 में जहां लालू यादव राजनीति के केंद्र में थे, वहीं 2025 में उसी जगह पर तेजस्वी यादव खड़े दिखाई दिए। फर्क सिर्फ इतना है कि लालू आज उम्र, बीमारी और कोर्ट के मामलों की वजह से सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके हैं। प्रचार, टिकट बंटवारा और रणनीति—सब तेजस्वी के कंधों पर था, लेकिन नतीजों ने उन्हें 2010 जैसा झटका दे दिया।
इस चुनाव ने साफ कर दिया कि (Tejashwi vs Nitish) मुकाबला इस बार भी आसान नहीं था।
क्या थे 2010 के समीकरण — सीट शेयरिंग ने बदल दी थी दिशा
उस दौर में जेडीयू 141 सीटों पर और बीजेपी 102 सीटों पर मैदान में उतरी थी। दूसरी ओर आरजेडी 168 और एलजेपी 75 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। कांग्रेस ने भी अकेले दम पर सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे।
तब का राजनीतिक वातावरण बिल्कुल अलग था, पर समीकरणों में जो समानता थी, वह थी नीतीश–बीजेपी का तालमेल, जिसने विपक्ष की पूरी रणनीति को ध्वस्त कर दिया था।
2010 का कमाल—एनडीए की 206 सीटों की ऐतिहासिक जीत
2010 के नतीजों में जेडीयू ने 115 और बीजेपी ने 91 सीटें जीती थीं। यानी कुल 206 सीटें। विपक्ष की हालत भी लगभग वैसी ही थी जैसी आज दिखाई दे रही है—आरजेडी 22, एलजेपी 3 और कांग्रेस सिर्फ 4 सीटों पर सिमट गई थी।
आज के रुझान उसी तस्वीर को फिर जीवित कर रहे हैं। एनडीए एक बार फिर वैसा ही (NDA Sweep 2025) रिकॉर्ड छूता दिख रहा है।
तेजस्वी की चुनौती क्यों कमजोर पड़ी?
तेजस्वी यादव के पास इस बार पूरी पार्टी की कमान थी। वे लगातार प्रचार में रहे, रैलियां कीं, संदेश दिया कि वे मुख्य मुकाबले में हैं। लेकिन जातीय समीकरण, सत्ता विरोधी लहर की अनुपस्थिति और नीतीश–बीजेपी की संयुक्त पकड़ ने उनकी रणनीति को कमज़ोर कर दिया।
लालू यादव की गैर-मौजूदगी भी कार्यकर्ताओं पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ गई, जिसने चुनावी गति को प्रभावित किया।
अंकड़ों की नजर से—कहां पलटा चुनाव?
2005 की तुलना में 2010 में जेडीयू को 27 सीटों का फायदा हुआ था और बीजेपी को 36 सीटें अधिक मिली थीं। 2025 के रुझान भी लगभग यही संकेत दे रहे हैं कि वोट प्रतिशत में बढ़त दोबारा एनडीए के पक्ष में शिफ्ट हो चुकी है।
आरजेडी के वोट शेयर में गिरावट और शहरी–अर्धशहरी सीटों पर कमजोर प्रदर्शन इस बार के नतीजों की दिशा तय करता दिख रहा है।
क्या आने वाले वर्षों की राजनीति इसी मोड़ पर टिकेगी?
आज जो नतीजे दिख रहे हैं, वे सिर्फ एक चुनावी आंकड़ा नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों की राजनीति को नई दिशा देते दिखाई दे रहे हैं।
2010 में जैसे लालू यादव को नुकसान झेलना पड़ा था, वैसे ही अब 2025 में तेजस्वी को भारी दबाव झेलना पड़ रहा है।
सवाल सिर्फ इतना है—क्या तेजस्वी इस झटके से उबर पाएंगे, या राजनीति की कमान फिर किसी नए चेहरे की तरफ जाएगी?
