सीजी भास्कर, 06 सितंबर। भारत में हाईकोर्ट का तलाक केस से जुड़ा एक दिलचस्प मामला सामने आया है।
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के जबलपुर हाईकोर्ट ने बैतूल निवासी दंपति के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर फैसला सुनाते हुए पति-पत्नी को तलाक की मंजूरी दे दी है।
अदालत ने कहा कि जब 22 वर्षों से पति-पत्नी अलग रह रहे हों और मेल-मिलाप की कोई संभावना न हो, तो विवाह को जारी रखना उचित नहीं है। (High Court Divorce Case in India)
1988 में हुआ था विवाह, 2003 से अलग रह रहे थे दोनों
निरंजन अग्रवाल और नीला की शादी 7 फरवरी 1988 को हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी।
शुरुआती वर्षों में सब सामान्य रहा, लेकिन बाद में नीला ने अलग घर बसाने की ज़िद की और पति से दूर हो गईं। साल 2003 में नीला मायके चली गईं और तब से दोनों का साथ छूट गया।
सफाई को लेकर थी पत्नी की अजीब आदतें
पति निरंजन ने अदालत में आरोप लगाया कि नीला का व्यवहार सामान्य दायरे से बाहर था।
वह रोजाना घर की दीवारों और फर्श तक की धुलाई करवाती थी। बाहर से लाई गई हर चीज़ को धुलवाने पर ज़ोर देती थी।
बच्चों पर भी दबाव था कि वे सुबह छह बजे से पहले स्नान करें।
पति का कहना था कि पत्नी अक्सर खाना नहीं बनाती थी और बच्चों के टिफिन की भी व्यवस्था नहीं करती थी, जिसकी वजह से बच्चे बिना भोजन के स्कूल जाते थे।
पति ने लगाई थी तलाक की अर्जी
निरंजन अग्रवाल ने पहले ट्रायल कोर्ट में तलाक की अर्जी दी थी, लेकिन 2005 में निचली अदालत ने इसे खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील दायर की।
अदालत ने माना कि पत्नी का आचरण असामान्य था और पति-पत्नी के बीच सहजीवन की कोई संभावना नहीं बची है।
लगातार 22 साल अलग रहने और मानसिक क्रूरता के आधार पर अदालत ने विवाह को भंग कर दिया।
हाईकोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस विशाल धगट और जस्टिस रामकुमार चौबे की डिवीजन बेंच ने कहा कि यह मामला मानसिक क्रूरता (mental cruelty) का है, जो हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक का वैध आधार है।
अदालत ने दोनों पक्षों को तलाक की मंजूरी देते हुए विवाद को समाप्त कर दिया।