सीजी भास्कर, 24 जुलाई : इंदौर के एक अस्पताल में मंगलवार देर रात दो सिर, एक धड़ वाली जुड़वा बच्चियों ने जन्म दिया। डाक्टरों ने आपातकालीन सिजेरियन सेक्शन के माध्यम से प्रसव किया। 22 वर्षीय प्रसूता देवास जिले के हरणगांव क्षेत्र के पलासी गांव की रहने वाली है। महिला ने देवास के हरणगांव स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पंजीयन कराया था और चार बार प्रसव पूर्व जांच (एएनसी) कराई थी, लेकिन कोई विकृति नहीं पकड़ी गई। सोमवार देर रात महिला को गंभीर प्रसव पीड़ा के चलते इंदौर के एमटीएच अस्पताल लाया गया। नवजात बच्चियों की हालत गंभीर है व उन्हें सीएनसी यूनिट में रखा गया है। बुधवार को उन्हें आइवी फ्यूड भी दिया गया।
यह मामला चिकित्सा अनुसंधान और जन-जागरूकता दोनों के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अस्पताल के एसएनसीयू प्रभारी और शिशु रोग विशेषज्ञ डा. सुनील आर्य ने बताया कि बच्चियों का वजन 2.8 किलो है। उसके दो सिर, दो रीढ़, दो लिवर, एक हृदय, फेफड़े और दो आंत तंत्र हैं। मंगलवार रात लगभग एक बजे स्त्री रोग विभाग के अध्यक्ष डा. नीलेश दलाल के मार्गदर्शन प्रसव कराया गया, तब पता चला कि बच्ची के दो सिर हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि मेडिकल भाषा में इस तरह के बच्चों को पैरापैगस डिसेफेलिक ट्विंस कहा जाता है। ये जुड़वा हैं व आपस में जुड़े हुए हैं। इसमें धड़ आपस में जुड़े रहते हैं, लेकिन सिर दो होते हैं। माता-पिता बच्चियों को देखने यूनिट में नहीं गए हैं।
दो सिर से नियंत्रित हो रहा शरीर
चाचा नेहरू अस्पताल की प्रभारी डा. प्रीति मालपानी ने बताया कि बच्चियों के दोनों सिर शरीर को नियंत्रित कर रहे हैं। दाहिना सिर दायां हिस्सा और बाया सिर बायां हिस्सा नियंत्रण कर रहा है। अभी बच्चियों को आक्सीजन पर रखा गया है। प्रारंभिक सोनोग्राफी में शरीर में एक हृदय नजर आया है। चिकित्सकों के अनुसार, दो लाख जन्म पर इस तरह के बच्चे का जन्म होता है। इन बच्चों के जीवित रहने की संभावना काफी कम होती है।
स्वास्थ्य केंद्र में डाक्टरों की लापरवाही आई सामने
स्वास्थ्य क्षेत्र के डाक्टरों और स्टाफ की लापरवाही भी सामने आई है। सरकार द्वारा एएनसी जांच की सुविधा इसलिए दी जा रही है, ताकि गंभीर जन्मजात विसंगतियों की समय रहते पहचान हो सके, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान यदि नियमित सोनोग्राफी कराई जाए तो ऐसे मामलों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। अधीक्षक डा. अनुपमा दवे ने बताया कि गर्भावस्था की शुरुआत में एक ही निषेचित अंडाणु दो भ्रूणों में पूरी तरह विभाजित नहीं हो पाता, तब जुड़वां बच्चे आपस में जुड़े रह जाते हैं। यह न तो वंशानुगत है और न ही सामान्य मातृ स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा है।