सीजी भास्कर 1 अगस्त
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर दिए गए विवादित बयान के मामले में कांग्रेस सांसद शशि थरूर की मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने थरूर की उस याचिका पर सुनवाई को टाल दिया है, जिसमें उन्होंने खुद के खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि केस को रद्द करने की मांग की थी। लेकिन सुनवाई टलने से पहले अदालत ने एक ऐसा बयान दिया है जो भारतीय राजनीति में शब्दों और सीमाओं की बहस को फिर से जगा सकता है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, यह विवाद 2018 के बेंगलुरु लिटरेचर फेस्टिवल से जुड़ा है, जहां थरूर ने अपनी किताब ‘The Paradoxical Prime Minister’ के संदर्भ में एक आरएसएस नेता के हवाले से कहा था—
“मोदी शिवलिंग पर बैठे उस बिच्छू की तरह हैं, जिसे न हाथ से हटाया जा सकता है और न ही चप्पल से मारा जा सकता है।”
थरूर के इस बयान पर बीजेपी नेता राजीव बब्बर ने कड़ी आपत्ति जताई थी और दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में नवंबर 2018 में आपराधिक मानहानि का केस दायर किया। बब्बर ने इसे न सिर्फ पीएम मोदी की छवि धूमिल करने वाला बताया, बल्कि इसे भगवान शिव और उनके भक्तों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट का संकेत: “इतना भावुक क्यों होना?”
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा:
“सार्वजनिक जीवन में लोगों को इतना भावुक नहीं होना चाहिए। प्रशासक और न्यायाधीश दोनों को मोटी चमड़ी वाला होना पड़ता है। इन बातों से फर्क नहीं पड़ता। आइए, इस मामले को बंद करें।”
अदालत ने इस मामले को ज्यादा प्राथमिकता न देते हुए अगली सुनवाई अगले सप्ताह के लिए टाल दी।
दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है याचिका
इससे पहले 9 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी थरूर की अपील खारिज कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि थरूर का बयान “घृणित, निंदनीय और प्रधानमंत्री की गरिमा के खिलाफ” है, और इससे बीजेपी, उसके पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की छवि को नुकसान पहुंचा है।
थरूर की दलील क्या है?
थरूर ने कहा कि वह सिर्फ एक पुराने बयान को कोट कर रहे थे, जो पहले से सार्वजनिक डोमेन में है। यह उनका व्यक्तिगत विचार नहीं था। लेकिन हाईकोर्ट से राहत न मिलने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।