सीजी भास्कर, 12 अक्टूबर। हाई कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि मुनंबम को वक्फ संपत्ति (Waqf Property Dispute) के रूप में अधिसूचित करना, केरल वक्फ बोर्ड का जमीन हड़पने का हथकंडा था। अदालत ने विवादित भूमि के स्वामित्व का पता लगाने के लिए जांच आयोग नियुक्त करने के सरकारी आदेश को बरकरार रखा।
केरल हाई कोर्ट के जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और श्याम कुमार वीएम की पीठ ने कहा कि अनिवार्य प्रक्रिया और वक्फ अधिनियम (Waqf Act 1995) के अनुपालन के अभाव में किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि विवादित भूमि को वक्फ के रूप में अधिसूचित करना 1954 और 1995 के कानूनों का उल्लंघन है।
पीठ ने कहा कि यदि वक्फ बोर्ड की ऐसी मनमानी घोषणाओं को न्यायिक मंजूरी मिल जाए तो कल ताजमहल, लाल किला, राज्य विधानमंडल भवन और यहां तक कि अदालत की इमारत (Judicial Observation on Waqf Claims) को भी वक्फ संपत्ति घोषित किया जा सकता है। इस कदम से उन सैकड़ों परिवारों की आजीविका प्रभावित हुई है जिन्होंने वक्फ की अधिसूचना से दशकों पहले जमीन खरीदी थी।
अदालत ने आयोग की नियुक्ति (Inquiry Commission on Waqf Land) को बरकरार रखते हुए कहा कि राज्य सरकार समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए स्वतंत्र है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि वक्फ बोर्ड द्वारा 70 साल बाद अचानक संपत्ति पर दावा करना (Delayed Waqf Declaration) कानून के विरुद्ध है और यह भारत जैसे पंथनिरपेक्ष देश (Secular India Judgment) की भावना के खिलाफ है।
क्या है मामला
एर्नाकुलम जिले के चेराई और मुनंबम गांव के निवासियों ने आरोप लगाया कि वक्फ बोर्ड उनकी जमीन और संपत्तियों पर अवैध रूप से दावा कर रहा है, जबकि उनके पास भूमि स्वामित्व के दस्तावेज और कर भुगतान की रसीदें हैं। केरल सरकार ने पिछले साल नवंबर में विवादित क्षेत्र में भूमि स्वामित्व की जांच के लिए हाई कोर्ट के पूर्व कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सी.एन. रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया था।