सीजी भास्कर, 22 मई : छत्तीसगढ़ के नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा जिलों के ट्राइ-जंक्शन अबूझमाड़ के घने जंगलों में सुरक्षा बलों ने माओवादी संगठन सीपीआई (माओवादी) के महासचिव और कुख्यात नक्सली नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू (Naxali Basava Raju) को मार गिराया।
इसे नक्सलवाद विरोधी अभियान में एक ऐतिहासिक सफलता माना जा रहा है। बुधवार को समाप्त हुए इस ऑपरेशन में कुल 27 नक्सली मारे गए, जिनमें बसवराजू (Naxali Basava Raju) का नाम सबसे महत्वपूर्ण है। वह पिछले चार दशकों से सबसे खतरनाक नक्सल नेटवर्क का रणनीतिकार रहा है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने नंबाला केशव राव जिसे बसवराजू के नाम से भी जाना जाता है, पर एक करोड़ रुपए का इनाम घोषित किया था। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में भी उसके खिलाफ अलग-अलग इनाम रखे गए थे। वह उन चुनिंदा नक्सल नेताओं में से एक था जो पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति, दोनों सर्वोच्च निकायों का हिस्सा था। उसे एक ऐसा नक्सल नेता माना जाता था जो अपनी तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था और नेटवर्क के कारण जंगल में कभी पकड़ा नहीं गया। लेकिन इस बार सुरक्षा बलों ने उसे चकमा देकर मार गिराया है।
बसवराजू का जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियान्नापेटा गांव में हुआ था। उसने वारंगल के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री प्राप्त की, लेकिन पढ़ाई के बाद उसने बंदूक उठाने का निर्णय लिया। 1970 के दशक में, उसने नक्सली आंदोलन से जुड़कर प्रकाश, कृष्णा, विजय, उमेश और कमलू जैसे कई छद्म नामों से काम करना शुरू किया। वह शुरुआत में एक जमीनी कार्यकर्ता था, लेकिन जल्द ही संगठन की रणनीति और हथियारों की ट्रेनिंग में माहिर हो गया। 1992 में, उसे पीपुल्स वार ग्रुप की केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया।
उस समय इस समूह का महासचिव गणपति था। बसवराजू ने गणपति और सीतारामैया जैसे नेताओं से गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उसने धीरे-धीरे सैन्य रणनीति, आईडी और बारूदी सुरंगों के संचालन में दक्षता हासिल कर ली। 2018 में, बसवराजू को सीपीआई (माओवादी) का महासचिव नियुक्त किया गया, जब गणपति ने उम्र और बीमारी के कारण अपना पद छोड़ दिया। हालांकि, बसवराजू की एक कमी यह थी कि उसके पास संगठन को राजनीतिक रूप से चलाने का अनुभव नहीं था।
नक्सल नेटवर्क की रीढ़ तोड़ने में फोर्स कामयाब (Naxali Basava Raju)
बसवराजू की मौत को नक्सल नेटवर्क की रीढ़ तोड़ने के रूप में देखा जा रहा है। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उसके कार्यकाल में माओवादी आंदोलन रणनीतिक रूप से कमजोर हुआ। वह सैन्य अभियानों के लिए जिम्मेदार रहा और बस्तर में कई बड़े हमलों की योजना बनाता रहा। सुरक्षा विशेषज्ञ और प्रोफेसर डॉ. गिरीशकांत पांडे कहते हैं, “बसवराजू एक सैन्य रणनीतिकार था, लेकिन उसके पास राजनीतिक दृष्टिकोण की कमी थी। उसके नेतृत्व में माओवादी आंदोलन ने अपनी दिशा खो दी। यही कारण है कि माओवादी आंदोलन भटक गया। उसकी मौत माओवादी नेटवर्क की रीढ़ तोड़ने के समान है।”
बसवराजू के मुख नक्सली हमले (Naxali Basava Raju)
- 2003 में अलीपीरी बम विस्फोट : आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की हत्या का प्रयास।
- 2010 में दंतेवाड़ा नरसंहार : इस हमले में 76 सीआरपीएफ जवानों की जान गई।
- 2013 में झीरम घाटी हमला : इस घटना में वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोग मारे गए।
- 2019 में श्यामगिरी हमला : इस हमले में बीजेपी विधायक भीमा मंडावी समेत पांच लोग मारे गए।
- 2020 में मिनपा एंबुश : सुकमा में हुए इस नक्सली हमले में 17 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए।
- 2021 में टेकलगुड़ेम हमला : बीजापुर में हुआ उस वर्ष का सबसे बड़ा नक्सली हमला, जिसमें 22 जवान शहीद हुए।
सुरक्षा बलों ने सुरक्षा घेरे को तोड़ने में सफल
सुरक्षा बलों को खुफिया जानकारी मिली थी कि बसवराजू सहित संगठन की केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो के कई सदस्य अबूझमाड़ के नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा ट्राई-जंक्शन पर मौजूद हैं। इसके बाद, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और कोंडागांव के डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड, एसटीएफ और अन्य इकाइयों ने मिलकर एक संयुक्त ऑपरेशन शुरू किया। यह अभियान 70 घंटे तक चला, जिसमें एक बड़े जंगल क्षेत्र को घेर लिया गया। मुठभेड़ के दौरान भारी गोलीबारी हुई, और सुरक्षा बलों ने बसवराजू के सुरक्षा घेरे को सफलतापूर्वक तोड़ दिया।
बसवराजू की मौत, नक्सलियों के लिए एक बड़ा झटका (Naxali Basava Raju)
इस अभियान में बसवराजू मारा गया। ऑपरेशन के दौरान डीआरजी का एक जवान शहीद हुआ, जबकि कुछ अन्य घायल हुए। इस कार्रवाई में बड़ी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद और इलेक्ट्रॉनिक सामग्री बरामद की गई। बसवराजू की मौत से सीपीआई (माओवादी) को गंभीर नुकसान हुआ है। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अब संगठन में कोई ऐसा अनुभवी नेता नहीं बचा है जो 40 से 50 वर्ष की उम्र का हो और नेतृत्व की क्षमता रखता हो। मौजूदा नेतृत्व या तो बुजुर्ग है या अनुभवहीन, जिससे नक्सली नेटवर्क के बिखरने की संभावना बढ़ गई है।