सीजी भास्कर, 27 जून : छत्तीसगढ़ सरकार की नई पहल से वन पट्टों के फौती नामांतरण (Forest Rights Transfer) की प्रक्रिया सरल और व्यवस्थित हो गई है। किसी पट्टाधारी की मृत्यु के बाद उसके वैध वारिसों को अधिकार अब आसानी से मिल रहा है।
वारिसों के नाम पर पट्टा दर्ज होने से वे न केवल भूमि के वैधानिक स्वामी बन पा रहे हैं, बल्कि शासकीय योजनाओं का लाभ भी उन्हें सुलभता से मिल रहा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा है कि प्रत्येक वनभूमि पट्टाधारी परिवार को उसका पूरा हक और सम्मान दिलाना, हमारी सरकार की प्राथमिकता में शामिल है।
देश में वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत कुल 23 लाख 88 हजार 834 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रों (Forest Rights Transfer) का वितरण मार्च 2025 तक किया गया है, इनमें छत्तीसगढ़ राज्य में कुल 4 लाख 82 हजार 471 व्यक्तिगत वन पत्रधारक हैं। राज्य में वन पट्टाधारकों की यह संख्या देश में सर्वाधिक है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 का क्रियान्वयन वर्ष 2008 से देश में हो रहा है लेकिन इस अधिनियम में वन अधिकार पत्रधारक की मृत्यु होने की दशा में उनके विधिक वारिसानों को भूमि के नामांतरण के संबंध में प्रक्रिया नहीं होने के कारण नामांतरण नहीं हो पा रहा था साथ ही उन्हें शासन के योजनाओं और सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था।
छत्तीसगढ़ सरकार ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की पहल पर इस कठिनाई को दूर करने के लिए तथा वंशजों का नाम पर काबिज वनभूमि का हस्तांतरण एवं राजस्व तथा वन अभिलेखों में दर्ज करने का निर्णय लिया। वन पट्टों के फौति-नामांतरण की सरल प्रक्रिया तय की गई है। अकेले छत्तीसगढ़ में ही 11 हजार 600 से अधिक वंशजों के आवेदन इसके लिए प्राप्त हुए हैं, जिन्हें प्रक्रिया के अभाव में नामांतरण के लिए भटकना पड़ रहा है। राज्य सरकार के इस निर्णय से अब उन्हें उनकी समस्या का निदान मिल गया है।
ऐसे लोगों को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा मोर जंगल, मोर जमीन, मोर वन अधिकार के माध्यम से वनों में निवास करने वाली अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परपरागत वन निवासियों द्वारा काबिज पैतृक भूमि पर वन अधिकारों की मान्यता प्रदान की जा रही है। साथ ही पत्रधारकों के अभिलेख दुरुस्तीकरण एवं डिजिटलाईजेशन, नामांतरण, सीमांकन, खाता विभाजन संबंधी कार्य सुगमता से हो रहा है।
राज्य में नामांतरण, सीमांकन, बटवारा, त्रुटि सुधार एवं अपील के अंतर्गत अब तक प्राप्त 11623 आवेदनों में से 3800 आवेदनों का निराकरण किया गया है। इसके फलस्वरुप विधिक वारिसान जो विभिन्न शासकीय योजनाओं तथा अन्य सुविधा से वंचित थे, उन्हे अब पीएम किसान सम्मान निधि, धान खरीदी आदि का लाभ भी मिल रहा है।
नामांतरण प्रक्रिया (Forest Rights Transfer)
नामांतरण की प्रक्रिया के अंतर्गत वन अधिकार मान्यता पत्रधारक का निधन होने पर कैफियत कॉलम में दर्ज प्रविष्टि में संशोधन किया जाता है। विधिक वारिसानों के मध्य वन अधिकार पत्र की वन भूमि के बंटवाने की प्रक्रिया-वन अधिकार मान्यता पत्रधारी के जीवनकाल में उनके द्वारा प्रस्तावित या उसकी मृत्यु के उपरांत विधिक वारिसानों के मध्य खाता विभाजन करने की सुविधा दी जा रही है।
सरकारी नक्शों में मान्य वन अधिकारों के सीमांकन की कार्रवाई की जाती है। संबंधित विभागों के अभिलेखों में वन अधिकारों को दर्ज करना किया जाता है। वन अधिकार पुस्तिका आदि अभिलेखों में त्रुटि का निराकरण भी किया जा रहा है।
वन अधिकार पत्रों का डिजिटाइजेशन (Forest Rights Transfer)
वन अधिकार पत्रों को डिजिटाईज कर ऑनलाईन उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए रिमोट सेन्सिंग एवं जीआईएस तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है। वन पट्टों के साथ अन्य जानकारी जैसे आधार, जनधन खाते, जॉब कार्ड आदि की जानकारी भी जोड़ी जा रही है।
इससे व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रधारक को न केवल अधिकार संबंधित सभी जानकारी सहजता से मिल रही है, बल्कि किसी वन अधिकार पत्रधारक के पास वन अधिकार पत्र उपलब्ध नहीं है तो वह इसे ऑनलाईन प्राप्त कर रहे हैं। डिजिटलाईजेशन के तहत व्यक्तिगत वन अधिकार के 4 लाख 82 हजार 471 पत्र धारकों में से 3 लाख 40 हजार 129 के स्कैनिंग अपलोडिंग का कार्य किया जा चुका है, जिसका लाभ पीढ़ियों तक वन अधिकार पत्रधारक एवं उनके वंशजो को मिलता रहेगा।
वन अधिकार पट्टों का क्रियान्वयन (Forest Rights Transfer)
छत्तीसगढ़ में व्यक्तिगत वन अधिकार के अंतर्गत 4 लाख 82 हजार 471 वनपट्टे वितरित किए गए हैं इसी प्रकार सामुदायिक वनधिकार के अंतर्गत 48 हजार 249 और सामुदायिक वन संसाधन अधिकार 4 हजार 396 पट्टों का वितरण किया गया है।