दंतेवाड़ा, बस्तर। जिस स्कूल को कभी नक्सलियों ने तबाह कर दिया था, आज उसी स्कूल में उनके आत्मसमर्पण कर चुके बच्चों की कक्षाएं चल रही हैं। यह बदलाव सिर्फ एक ईमारत की नहीं, बल्कि एक विचारधारा की हार और शिक्षा की जीत की कहानी है। भांसी-मासापारा गांव में स्थित यह स्कूल अब शांति, शिक्षा और उम्मीद का प्रतीक बन चुका है।
बंदूक से कलम की ओर: लोन वर्राटू की ऐतिहासिक सफलता
यह बदलाव संभव हो सका है छत्तीसगढ़ सरकार के ‘लोन वर्राटू’ (Come Back Home) अभियान से, जिसके तहत पिछले चार वर्षों में 1000 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इन आत्मसमर्पित नक्सलियों ने न केवल हिंसा छोड़ दी, बल्कि स्कूल की नींव रखकर शिक्षा को अपनाया, और अब उनके बच्चे उसी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं जिसे उन्होंने कभी तोड़ा था।
स्कूल अब सिर्फ ईमारत नहीं, बदलाव की कहानी है
शिक्षक केशव ध्रुव बताते हैं कि नक्सलियों द्वारा तोड़े गए इस स्कूल को जिला प्रशासन और समाज के सहयोग से दोबारा खड़ा किया गया। स्कूल के निर्माण में आत्मसमर्पित नक्सलियों ने खुद श्रमदान दिया। यह स्कूल अब केवल पढ़ाई का केंद्र नहीं, बल्कि सकारात्मक परिवर्तन की मिसाल बन गया है।
बच्चों के लिए पूरी सुविधाएं
- मुफ्त किताबें और कॉपियाँ
- स्कूल ड्रेस और यूनिफॉर्म
- दोपहर का पौष्टिक भोजन
- मानसिक विकास के लिए विशेष कक्षाएं
जिला प्रशासन की ओर से बच्चों को हर संभव शैक्षणिक सहायता दी जा रही है ताकि बस्तर का भविष्य नक्सलवाद नहीं, ज्ञान और विकास से जुड़ा हो।
आत्मसमर्पित नक्सली बोले – “अब लगता है फैसला सही था”
एक पूर्व नक्सली ने भावुक होते हुए कहा –
“पहले हाथों में बंदूक थी, अब हमारे बच्चों के हाथों में कलम है। अब लगता है, हमने सही समय पर सही फैसला लिया।”
शिक्षा से बदलेगा बस्तर का भविष्य
यह कहानी सिर्फ दंतेवाड़ा की नहीं, बल्कि उन सभी इलाकों की है जहां हिंसा ने उम्मीद को दबा दिया था। आज यह स्कूल बताता है कि जब समाज और प्रशासन मिलकर काम करें, तो सबसे गहरे अंधेरे में भी उजाला लाया जा सकता है।