सीजी भास्कर, 8 सितंबर। विधानसभा अध्यक्ष निवास के सभागृह में सात सितंबर 2025 को संध्या 7 बजे पुस्तक विमोचन (Autobiography Launch) एवं चर्चा गोष्ठी का आयोजन अगासदिया ने किया। डॉ. परदेशीराम वर्मा लिखित आत्मकथा ‘सुरंग के उस पार‘ का विमोचन मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, प्रतिपक्ष के नेता डॉ. चरणदास महंत एवं राजमाता फुलवा देवी ने किया।
इस अवसर पर डॉ. रमनसिंह ने कहा कि डॉ. परदेशीराम वर्मा का जीवन संघर्ष और कठिनाइयों के सुरंग से निकलने का साहस प्रेरणास्पद है। उन्होंने अठारह वर्ष की उम्र में 1965 में प्रथम श्रेणी में बायलाजी लेकर हायर सेकेन्डरी परीक्षा पास करने के बाद शासकीय आयुर्वेदिक कॉलेज रायपुर में दाखिला लिया। अकाल के कारण वे पढ़ाई छोड़कर फौज में चले गए। देवदास बंजारे जी के साथ मुझसे मिलने रायपुर आ रहे थे कि दुर्घटनाग्रस्त हो गए। फिर भी वे छत्तीसगढ़ और देश की सेवा करते हुए लगातार लिख रहे हैं। वे मेरे अत्यन्त प्रिय लेखक हैं। (Autobiography Launch) उनकी किताबों को मैं बहुंत चाव से पढ़ता हूं।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने कहा कि डॉ. परदेशीराम वर्मा छत्तीसगढ़ महतारी की वंदना करते हुए लेखन में आगे ही आगे बढ़ते गए। माटी के प्रति प्रेम देखकर मुझे लगता है कि इनका नाम माटीराम होना चाहिए। इनसे हमारा चालीस वर्षों का गहन सम्पर्क है। मैं 92 में उनके गांव लिमतरा गया। वे कबीर पर पुस्तक छत्तीसगढ़ में कबीर लिखकर पुरस्कृत हो चुके हैं। उनके उपन्यास प्रस्थान को महंत अस्मिता का प्रथम पुरस्कार मिला था। वे बेहद सजग, सक्रिय और विनम्र व्यक्ति हैं।
विशेष अतिथि राजमाता फुलवा देवी कांगे ने कहा कि परदेशीराम जी 2007 से हमारे परिवार से जुड़े। उनके जुड़ने के बाद हमारा गांव बघमार मांझीधाम के रूप में चर्चित हुआ। मांझी आन्दोलन के सन्दर्भ में डॉ. परदेशीराम वर्मा का लेखन बहुत लोकप्रिय और प्रेरक है। लेखक डॉ. परदेशीराम वर्मा ने कहा कि जिनके सहारे मैं कठिन जीवन की लंबी सुरंग से बाहर आ सका उन सबके प्रति कृतज्ञता इस किताब (Autobiography Launch) में है।
वक्ता डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ी एवं हिन्दी में डॉ. परदेशीराम वर्मा को एक समान सिध्दि प्राप्त है। उनका उपन्यास ‘आवा‘ बीस वर्षों से कई विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में है। सुरंग के उस पार एक अद्भुत किताब है। इसे पढ़कर जीने और संघर्ष करने का हौसला मिलता है। वे छत्तीसगढ़ी शब्दों और वाक्यों को हिन्दी कहानी में प्रयोग कर कालजयी कथाकार कहलाए। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि उनकी कहानी साहित्य अकादमी द्वारा संकलन में चुनी गई। (Autobiography Launch)
वक्ता डॉ. सोनाली चक्रवर्ती ने कहा कि एक भूतपूर्व सैनिक और लेखक के रूप में डॉ. परदेशीराम वर्मा छत्तीसगढ़ और इसकी संस्कृति पर गहरे गर्व से लिखते हैं। दुख जीवन भर उनका पीछा करता रहा मगर वे हारते नहीं हैं। यह विकट जिजीविषा है। पुस्तक के मुख पृष्ठ पर ठीक ही लिखा है कि सुरंग लंबी है तो जिजीविषा भी कम नहीं। यह किताब अपनी अनूठी प्रस्तुति और मार्मिक कथासूत्रों के लिए चर्चित होगी।
प्रख्यात कलाकार राजेन्द्र साहू ने छत्तीसगढ़ महतारी वंदना गीत गाया। शिक्षाविद साहित्यकार स्मिता वर्मा ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें छुटपन से आज के समारोह के माननीय अतिथियों का स्नेह मिला। बाबूजी सुख और दुख में समभाव से जीते हैं। सबके प्रति इस पुस्तक में भी आभार के प्रसंग हैं। कार्यक्रम संचालन कलाकार महेश वर्मा ने किया। सभागार में बड़ी संख्या में साहित्य, समाज सेवा, चिकित्सा, कला, प्रशासन और राजनीति क्षेत्र के लोग उपस्थित थे।