सीजी भास्कर, 13 अक्टूबर। Chhattisgarh High Court consent judgement: प्रेम संबंध में बनी सहमति को कोर्ट ने माना स्वेच्छा
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो समाज और न्याय की सीमाओं के बीच संतुलन का उदाहरण बन गया है।
(Chhattisgarh High Court consent judgement) में अदालत ने कहा कि, यदि दो बालिग व्यक्ति आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं,
तो इसे ‘दुष्कर्म’ नहीं कहा जा सकता।
न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी की एकलपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए
सीएएफ के जवान रुपेश कुमार पुरी को दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया।
ट्रायल कोर्ट का फैसला रद्द, आरोपी को राहत
यह मामला बस्तर जिले से जुड़ा है, जहां वर्ष 2022 में
फास्ट ट्रैक कोर्ट, जगदलपुर ने रुपेश कुमार पुरी को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
मगर हाई कोर्ट ने इस फैसले को रद्द करते हुए कहा —
“यह मामला जबरन यौन शोषण का नहीं, बल्कि आपसी प्रेम और स्वेच्छा का प्रतीत होता है।”
प्रेम संबंध, न कि झूठे वादे का मामला
अदालत ने पाया कि पीड़िता बालिग थी और लंबे समय तक आरोपी के साथ रही थी।
उसने स्वीकार किया कि वह खुद आरोपी के घर गई, उसके साथ महीनों रही,
और दोनों के बीच consensual relationship (सहमति से बने संबंध) था।
ऐसे में इसे false promise of marriage पर आधारित अपराध नहीं कहा जा सकता।
High Court की टिप्पणी: “सिर्फ शादी का वादा दुष्कर्म नहीं बनाता”
न्यायमूर्ति चंद्रवंशी ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि,
“केवल विवाह के वादे पर बने संबंध को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता,
जब तक यह साबित न हो कि आरोपी ने शुरुआत से ही शादी का इरादा नहीं रखा था।”
इस तर्क के आधार पर अदालत ने (Chhattisgarh High Court consent judgement) में
ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए जवान रुपेश पुरी को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि: 2020 की शिकायत और रिश्ते की हकीकत
मामला वर्ष 2020 का है, जब पीड़िता ने थाना पहुंचकर शिकायत दर्ज कराई थी।
उसका कहना था कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर उसके साथ संबंध बनाए।
हालांकि सुनवाई में यह सामने आया कि दोनों का रिश्ता 2013 से चला आ रहा था।
पीड़िता ने स्वयं माना कि उसने आरोपी को फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी,
और दोनों के बीच वर्षों तक संपर्क रहा।
गवाही में सामने आए परिवार के बयान
पीड़िता के माता-पिता ने भी अदालत में कहा कि,
यदि आरोपी के घरवाले बेटी के साथ ठीक व्यवहार करते,
तो वे शिकायत दर्ज नहीं कराते।
अदालत ने इसे महत्वपूर्ण तथ्य मानते हुए कहा —
“यह परिस्थितियाँ बताती हैं कि मामला प्रेम संबंध से उपजा है,
ना कि किसी जबरन यौन शोषण का।”
मेडिकल रिपोर्ट और साक्ष्य कमजोर पड़े
मेडिकल रिपोर्ट और एफएसएल परीक्षणों में भी दुष्कर्म के ठोस प्रमाण नहीं मिले।
अदालत ने कहा कि, “साक्ष्य स्वयं यह दर्शाते हैं कि संबंध आपसी सहमति से बना था,
इसलिए इसे sexual assault under IPC 376 की परिभाषा में नहीं लाया जा सकता।”
कानूनी महत्व: यह फैसला बनेगा मिसाल
यह (Chhattisgarh High Court consent judgement) भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण नज़ीर बन सकता है,
जहां प्रेम संबंध और आपसी सहमति की सीमाएँ आपराधिक कानून से टकराती हैं।
अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून का उद्देश्य रिश्तों को अपराध नहीं बनाना,
बल्कि जबरन या धोखे से किए गए शोषण को दंडित करना है।