सीजी भास्कर, 17 अक्टूबर। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य सहायता एजेंसी ने बुधवार को कहा कि शीर्ष दानदाताओं द्वारा वित्तीय योगदान में की गई कटौती से छह देशों में उसकी गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। एजेंसी ने चेतावनी दी कि इससे करीब 1.4 करोड़ लोग (Global Hunger Crisis) भुखमरी की कगार पर पहुंच सकते हैं।
पारंपरिक रूप से संयुक्त राष्ट्र की सबसे अधिक वित्तीय योगदान प्राप्त करने वाली एजेंसी रही विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा कि इस वर्ष उसका वित्तीय योगदान अब तक की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। इसका मुख्य कारण अमेरिका (डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के तहत) तथा अन्य प्रमुख पश्चिमी देशों द्वारा अनुदान में की गई भारी कटौती है। एजेंसी ने आगाह किया कि उसकी खाद्य सहायता प्राप्त करने वाले 1.37 करोड़ लोगों को अब आपात स्तर की भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, जिन देशों में यह वित्तीय कटौती सबसे गंभीर प्रभाव डाल रही है, उनमें अफगानिस्तान, कांगो, हैती, सोमालिया, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं। एजेंसी की कार्यकारी निदेशक सिंडी मैक्केन ने कहा, “हम लाखों लोगों की जीवनरेखा को अपनी आंखों के सामने टूटते हुए देख रहे हैं। यह स्थिति चिंताजनक है और तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।”
डब्ल्यूएफपी ने बताया कि इस वर्ष उसे पिछले वर्षों की तुलना में लगभग 40 प्रतिशत कम वित्तीय योगदान मिलने की संभावना है, जिससे उसका अनुमानित बजट 10 अरब डॉलर से घटकर सिर्फ 6.4 अरब डॉलर रह जाएगा। उसे इस वर्ष अमेरिका से करीब 1.5 अरब डॉलर मिलने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष के 4.5 अरब डॉलर की तुलना में बेहद कम है। अन्य शीर्ष दानदाताओं ने भी योगदान में कटौती की है, जिससे (Global Hunger Crisis) का खतरा और गहरा गया है।
मैक्केन ने कहा, “यह सिर्फ धन की कमी नहीं है। यह उस गहरी खाई का प्रतीक है जो बताती है कि हमें क्या करना चाहिए और हम वास्तव में क्या कर पा रहे हैं। अगर यह रुझान जारी रहा तो हम भुखमरी के खिलाफ दशकों की मेहनत से हासिल प्रगति खो देंगे।”
रोम स्थित एजेंसी का कहना है कि वैश्विक भुखमरी पहले ही रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है, जहां 31.9 करोड़ लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। गाजा और सूडान में अकाल की स्थिति बन चुकी है, जबकि अफगानिस्तान में सहायता अब खाद्य असुरक्षित आबादी के 10 प्रतिशत से भी कम तक पहुंच रही है। कई लोग तो यह भी नहीं जानते कि उनका अगला भोजन कहां से मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो यह (Global Hunger Crisis) मानवीय आपदा में बदल सकती है।