सीजी भास्कर, 11 अक्टूबर। हाई कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने की परिभाषा (Court Judgement on Suicide Abetment) को स्पष्ट किया है। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने का अर्थ केवल शारीरिक कार्यवाही (Physical Act) नहीं है, बल्कि यह उस व्यक्ति के प्रति किए गए व्यवहार या आचरण से भी जुड़ा हो सकता है।
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस यशवीर सिंह राठौर ने यह टिप्पणी उस मामले में की जिसमें एक पत्नी और उसके परिवार पर पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने कहा कि पत्नी का पति के साथ रहने से इनकार करना (Refusal to Cohabit) उकसावे की श्रेणी में नहीं आता और इस आधार पर दर्ज एफआईआर को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
फाजिल्का के अबोहर निवासी मोनिका मित्तल ने अपने और अपने परिवार के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की याचिका दाखिल की थी। एफआईआर में धारा 306 (Court Judgement on Suicide Abetment) के तहत मामला दर्ज किया गया था। आरोप था कि साहिब सिंह की पत्नी के परिजन उसे और बच्चों को साथ रहने नहीं दे रहे थे, जिससे आहत होकर उसने आत्मदाह कर लिया। घटना 12 अक्टूबर 2022 को हुई थी, जबकि साहिब की मृत्यु 19 अक्टूबर को इलाज के दौरान हुई।
पुलिस को एक हस्तलिखित नोट मिला था, जिसमें मृतक ने अपने ससुराल पक्ष को परिवार बर्बाद करने का दोषी ठहराया था। वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से वकील ने कहा कि मृतक शराब का आदी था और अक्सर आत्महत्या की धमकी (Suicide Threat) देकर पत्नी और उसके परिवार को फंसाने की कोशिश करता था। विवाह टूटने का मुख्य कारण घरेलू हिंसा था।
घटना वाले दिन दोनों पक्ष अबोहर स्थित मध्यस्थता केंद्र में मौजूद थे, जहां पत्नी ने सुरक्षा कारणों से पति के साथ रहने से मना कर दिया। इससे गुस्से में आकर साहिब सिंह ने आत्मदाह करने से पहले एक वीडियो बनाकर आत्महत्या की धमकी दी और खुद को आग लगा ली। अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि पत्नी और उसके परिवार का लगातार विरोध मानसिक उत्पीड़न के समान था।