सीजी भास्कर 3 जुलाई लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला पिछले महीने उत्तराखंड के मसूरी के दौरे पर गए थे. 12 जून को उनकी ये यात्रा हुई थी. उनका ये दौरा अब चर्चा में आ गया है. इसकी वजह बने हैं देहरादून के जिलाधिकारी. डीएम साविन बंसल ने ओम बिरला की यात्रा के दौरान प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया था.
लोकसभा सचिवालय और कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के अपर सचिव ने उनकी शिकायत उत्तराखंड सरकार से की थी. जिसके बाद प्रोटोकॉल डिपार्टमेंट के सचिव विनोद कुमार ने जिलाधिकारी को लेटर लिखकर जवाब मांगा है.जिलाधिकारी साविन बंसल के बारे में विस्तार से बात करें उससे पहले जान लेते हैं कि उन्होंने स्पीकर के दौरे के दौरान क्या किया था. दरअसल, 12 जून को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला मसूरी के दौरे पर गए थे. इस दौरान डीएम साविल बंसल ने प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया.अधिकारियों के अनुसार, लोकसभा सचिवालय और कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के अपर सचिव की ओर से शासन को दो चिट्ठी लिखी गई. जिसके बाद प्रोटोकॉल विभाग के सचिव विनोद कुमार सुमन ने डीएम साविन बंसल को पत्र लिखकर बताया,
12 जून को बिरला के दौरे के दौरान अध्यक्ष कार्यालय की ओर से डीएम से फोन पर संपर्क कर आवश्यक जानकारी लेने का प्रयास किया गया, लेकिन समुचित जवाब नहीं मिला.लेटर में और क्या लिखा गया?चिट्ठी में यह भी कहा गया है कि डीएम सहयोग नहीं कर रहे थे. सुमन द्वारा लिखे गए पत्र में दो पत्रों का हवाला देते हुए लिखा गया है. यह भी जिक्र किया गया है कि माननीय अध्यक्ष को उनके पद के अनुरूप उचित सम्मान और शिष्टाचार नहीं मिला. पूरे मामले में स्थापित प्रोटोकॉल मानकों का उल्लंघन हुआ.उन्होंने बंसल से पूरे मामले पर स्पष्ट एवं विस्तृत रिपोर्ट तत्काल राज्य सरकार को उपलब्ध कराने को कहा है. 25 जून को लिखे गए पत्र में लोकसभा सचिवालय के 17 जून और डीओपीटी के 19 जून के पत्रों का हवाला दिया गया है.विशेषाधिकार समिति के अतिरिक्त सचिव द्वारा लोकसभा सचिवालय को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि बार-बार फोन करने और सूचना देने के बावजूद डीएम ने फोन नहीं उठाया.
बाद में ओम बिरला के कार्यालय ने सीएम कार्यालय से संपर्क किया, जिसके बाद डीएम ने स्पीकर के कार्यालय से संपर्क किया.चिट्ठी में आगे कहा गया है कि डीएम का रवैया असहयोगी और असभ्य रहा. इसमें कहा गया है कि डीएम देहरादून हवाई अड्डे पर अध्यक्ष के आगमन पर उन्हें लेने और विदा करने के लिए मौजूद नहीं थे. बाद में इस पत्र को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने संज्ञान में लिया और सरकार से इसपर गौर करने को कहा.