सीजी भास्कर, 11 सितंबर। मां का रिश्ता दुनिया का सबसे पवित्र माना जाता है। वही मां जब अपने बच्चे के खिलाफ (Postpartum Psychosis) कदम उठाती है, तो यह सुनने वालों के दिल को चीर जाता है।
यह कहानी ऐसी ही है – एक मासूम नवजात की, जिसकी जिंदगी सिर्फ किस्मत से बची।
चार सितंबर की शाम का वक्त था। घर में अचानक जोर-जोर से रोने की आवाज गूंजी।
जब घरवालों ने खोजबीन की, तो वे दंग रह गए। फ्रीजर का दरवाजा खोला तो अंदर 15 दिन का नवजात तड़प रहा था।
स्वजन ने आनन-फानन बच्चे को बाहर निकाला, गर्म कपड़ों में लपेटा और पास के बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाने ले गए।
बच्चे को सर्दी-जुकाम हुआ था, लेकिन डॉक्टरों ने साफ किया कि उसकी जान खतरे से बाहर है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था।
मुरादाबाद का दर्दनाक मामला
यह घटना उत्तर प्रदेश की मुरादाबाद जिले की है। 24 वर्षीय महिला, जो एक पीतल कारोबारी की पत्नी है, प्रसवोत्तर मनोविकृति (Postpartum Psychosis) से जूझ रही थी।
परिवार के अनुसार, बच्चे के जन्म के बाद से ही महिला अजीब व्यवहार करने लगी थी। कभी घंटों दीवार ताकती, कभी नवजात को लगातार घूरती।
उसकी हरकतें घरवालों को खटक रही थीं, लेकिन उन्होंने इसे ऊपरी असर मानकर झाड़-फूंक कराई। असली वजह का अंदाजा किसी को नहीं था।
फंदे में जिंदगी
परिवार ने बताया कि जब महिला ने बच्चे को फ्रीजर में रखा, तो वह खुद बेड पर गहरी नींद में पड़ी थी। बच्चे की चीख सुनकर परिजन टूट पड़े।
यह सिर्फ परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि हर संवेदनशील इंसान के लिए दिल दहला देने वाली स्थिति थी। बच्चे के जीवन से खेलने की यह घटना दिखाती है कि मानसिक बीमारियां कितनी खतरनाक हो सकती हैं।
खासकर तब जब परिवार समय रहते स्थिति को समझ न पाए।
डॉक्टरों की चेतावनी
बाल रोग विशेषज्ञों ने कहा कि –
समय रहते नवजात (Postpartum Psychosis) को बाहर नहीं निकाला जाता, तो उसकी सांसें थम सकती थीं। मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. कार्तिकेय गुप्ता ने जांच के बाद बताया कि महिला गंभीर मानसिक बीमारी (Mental Illness) की शिकार है।
यह बीमारी जन्म के बाद कुछ महिलाओं को जकड़ लेती है। इसके चलते उन्हें बार-बार भ्रम होता है कि बच्चा उन्हें या उनके परिवार को नुकसान पहुंचाएगा। इसी डर ने महिला को ऐसी हरकत करने पर मजबूर कर दिया।
पोस्टपार्टम साइकोसिस क्या है?
चिकित्सकों के अनुसार, पोस्टपार्टम साइकोसिस एक दुर्लभ लेकिन बेहद गंभीर बीमारी है। यह प्रसव के दौरान और उसके बाद हार्मोनल बदलाव की वजह से होती है।
प्रभावित महिला वास्तविकता से कटने लगती है और उसके दिमाग में भय और भ्रम (Hallucination) घर कर जाते हैं। कभी-कभी उसे लगता है कि बच्चा ही उसकी जान ले लेगा।
ऐसी स्थिति में वह खुद या अपने शिशु को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर सकती है।
इलाज और उम्मीद
फिलहाल महिला का इलाज जारी है और उसकी हालत में सुधार हो रहा है। वह अब अपनी गलती को समझ रही है।
डॉक्टरों का कहना है कि –
सही इलाज और परिवार का सहयोग इस बीमारी से जूझ रही महिलाओं के लिए जीवनदायी साबित हो सकता है। यह घटना समाज के लिए भी बड़ा सबक है कि मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना किसी त्रासदी को जन्म दे सकता है।
संवेदनाओं को झकझोरने वाला सच
यह घटना हमें याद दिलाती है कि मां भी कभी-कभी बीमारी के चलते अपने सबसे बड़े रिश्ते से लड़ने पर मजबूर हो सकती है। यह सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि समाज को चेताने वाली हकीकत है।
जरूरत है कि मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लिया जाए, ताकि कोई और मासूम ऐसी भयावह स्थिति का शिकार न बने।