Russia-India Oil Deal : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन दो दिवसीय भारत दौरे पर आ रहे हैं और उनके साथ आने वाले प्रतिनिधिमंडल में इगोर सेचिन भी शामिल हैं—जो रूस की प्रमुख ऊर्जा कंपनी रोसनेफ्ट के सबसे प्रभावशाली चेहरों में गिने जाते हैं।
भारत के उद्योग जगत, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में, इस यात्रा ने एक बार फिर हलचल बढ़ा दी है।
रिलायंस–रोसनेफ्ट का 10 साल का समझौता, सस्ते तेल का बड़ा खेल
2024 में रिलायंस इंडस्ट्रीज और रोसनेफ्ट के बीच एक दशक लंबा करार हुआ था।
समझौते के तहत भारत को करीब 5 लाख बैरल प्रतिदिन रूसी कच्चा तेल मिलने लगा—जो पश्चिमी बदलावों और भू-राजनीतिक तनावों के बीच भारत की तेल लागत को काफी कम करता रहा।
धीरे-धीरे भारत की तेल बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी 40% से ऊपर चली गई, जिससे यह Russia-India Oil Deal भारत की ऊर्जा रणनीति में एक निर्णायक अध्याय बन गया।
ट्रंप का बैन—रोसनेफ्ट पर प्रतिबंध, भारत पर बढ़ा दबाव
नई अमेरिकी प्रशासन ने हाल ही में रोसनेफ्ट पर सीधे प्रतिबंध लगा दिए।
ट्रंप का आरोप है कि भारत रूस से बड़ी मात्रा में तेल लेकर अप्रत्यक्ष रूप से उसके युद्ध अभियान को मजबूत कर रहा है।
इसी कड़ी में अमेरिका ने भारत के लिए 25% अतिरिक्त टैरिफ भी लागू कर दिया है, जिससे कारोबारी समीकरण और जटिल हो गए हैं।
रिफाइनरियों का कदम पीछे, रिलायंस ने भी किया प्रोसेसिंग में बदलाव
प्रतिबंधों के बाद भारत की कई रिफाइनरियों ने रूसी तेल की खरीद कम कर दी है।
रिलायंस ने स्पष्ट किया है कि वह 22 नवंबर के बाद आने वाले गैर-प्रतिबंधित रूसी तेल को ही अपने घरेलू संयंत्र में प्रोसेस करेगा।
इस बदलाव ने वैश्विक बाजारों में यह संकेत दिया है कि भारत भी दबाव को पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।
पुतिन की यात्रा—क्या फिर से बनेगा ऊर्जा संतुलन?
पुतिन के भारत आगमन के दौरान तेल आपूर्ति और प्रतिबंधों से जुड़े मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की उम्मीद है।
रूस चाहता है कि भारत—जो उसका सबसे बड़ा एशियाई खरीदार बन चुका है—अमेरिकी दबाव के चलते अपनी रणनीति न बदले।
भारत की ऊर्जा जरूरतें और रूस की आर्थिक निर्भरता, दोनों ही इस रिश्ते को खास बनाती हैं, लेकिन Russia-India Oil Deal आज वैश्विक राजनीति के सबसे संवेदनशील मुद्दों में से एक बन चुका है।
भविष्य की दिशा—नई डील या नई दूरी?
यह यात्रा इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि भारत को तय करना है—क्या वह रूस से तेल आयात के अपने मौजूदा ढांचे को जारी रखेगा, या अमेरिकी दबावों को देखते हुए कोई वैकल्पिक रास्ता अपनाएगा।
दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे ऊर्जा और रणनीतिक सहयोग अब एक ऐसे मोड़ पर हैं, जहां हर फैसला दूरगामी परिणाम देगा।


