बिलासपुर (छत्तीसगढ़):
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के एक गांव में वन्यजीव चीतल की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार में पेट्रोल के इस्तेमाल से विवाद खड़ा हो गया है। मामला ग्राम पंचायत खोंगसरा के अमगोहन बाजारपारा स्थित सारगोड पुल के पास का है, जहां शनिवार दोपहर एक मृत चीतल मिला था। रविवार को उसके अंतिम संस्कार के दौरान वन विभाग द्वारा लकड़ी के साथ पेट्रोल डालकर शव जलाए जाने से स्थानीय ग्रामीण भड़क उठे।
ग्रामीणों ने जताया विरोध, उठे नियमों के सवाल
चीतल के दाह संस्कार में पेट्रोल के प्रयोग को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया वन्यजीव संरक्षण के नियमों के खिलाफ है। लोगों का मानना है कि यह न केवल गलत परंपरा है, बल्कि इससे वन्यजीव सम्मान की भावना को भी ठेस पहुंचती है। वहीं, इस घटना ने वन विभाग की कार्यशैली और जिम्मेदारी पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सूचना के बाद भी देरी, डॉक्टर नहीं पहुंच सके
मिली जानकारी के अनुसार, शनिवार दोपहर करीब 3 बजे वन प्रबंध समिति के एक सदस्य ने वन विभाग को चीतल के मृत मिलने की सूचना दी थी। इसके बाद डिप्टी रेंजर नरेंद्र सिंह बैसवाड़े अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे और आवश्यक पंचनामा कार्रवाई की। शव को वन विभाग के गोदाम में सुरक्षित रखा गया था। पोस्टमार्टम के लिए पशु चिकित्सक डॉ. रघुवंशी को शाम 4 बजे सूचना दी गई, लेकिन सूचना देर से मिलने के कारण वे मौके पर नहीं पहुंच सके।
रविवार को पेट्रोल से किया गया दाह संस्कार
अगले दिन यानी रविवार को चीतल का पोस्टमार्टम कराया गया और फिर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया की गई। इसी दौरान लकड़ियों में नमी होने की बात कहकर वन विभाग की टीम ने पेट्रोल का इस्तेमाल किया, जिससे आग लगाई जा सके। इस कदम से ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया और उन्होंने वन विभाग की लापरवाही के खिलाफ आवाज़ उठाई।
रेंजर को जारी हुआ कारण बताओ नोटिस
मामले की गंभीरता को देखते हुए कोटा एसडीओ निश्चल शुक्ला ने बेलगहना रेंजर देव सिंह मरावी को नोटिस जारी कर तीन दिन के भीतर जवाब मांगा है। रेंजर ने मौखिक तौर पर सफाई दी है कि लकड़ी गीली थी, इसलिए पेट्रोल का उपयोग करना पड़ा, लेकिन अब उन्हें इस पर लिखित स्पष्टीकरण देना होगा।