सीजी भास्कर 27 जून दंडजापान में शुक्रवार को एक शख्स को फांसी पर लटका दिया गया. उसने 2017 में नौ लोगों की हत्या कर दी थी. उसे ‘ट्विटर किलर’ के नाम से जाना जाता था. शख्स का असल नाम ताकाहिरो शिराइशी था. ताकाहिरो सोशल ने मीडिया पर लोगों से संपर्क कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया. इस तरह से उसने नौ लोगों की हत्या कर दी थी. यह देश में पिछले तीन वर्षों में पहला मामला है, जब किसी को मृत्युदंड दिया गया. इससे पहले 2022 में एक आरोपी को फांसी दी गई थी.
फ्लैट पर बुलाकर घोंट देता था गलाताकाहिरो शिराइशी ने 2017 में टोक्यो के पास कनागावा के जामा शहर में अपने अपार्टमेंट में बुलाकर आठ महिलाओं और एक पुरुष की गला घोंटकर हत्या कर दी थी. वह सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्विटर के माध्यम से लोगों से संपर्क करता था. फिर उन्हें अपने जाल में फंसाकर मिलने बुलाता था और फिर उनकी गला घोंटकर हत्या कर देता था. इसके बाद शवों को टुकड़े-टुकड़े कर ठिकाने लगा देता था. सभी लोगों से उसने ट्विटर के जरिए संपर्क किया था. इस वजह से ताकाहिरो को ट्विटर किलर कहा जाता था.तीन साल बाद पहली फंसी की सजाजापान के न्याय मंत्री केसुके सुजुकी होंने शिराइशी को फांसी देने की अनुमति दी थी.
उन्होंने कहा कि उन्होंने सावधानीपूर्वक जांच के बाद यह निर्णय लिया, जिसमें अपराधी के ‘अत्यंत स्वार्थी’ उद्देश्य को ध्यान में रखा गया. उसने समाज को गहरा सदमा दिया था और इससे शांति फैल गई थी.सुजुकी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि जबतक ये हिंसक अपराध हो रहे हैं, तब मृत्युदंड को खत्म करना उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि जापान में फिलहाल 105 कैदी मौत की सजा पाए हुए हैं.इससे पहले 2022 में दी गई थी फांसीइससे पहले जुलाई 2022 में एक व्यक्ति को फांसी दी गई थी. उसने 2008 में टोक्यो के शॉपिंग जिले अकिहाबारा में चाकू से हमला किया था. पिछले अक्टूबर में प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा की सरकार बनने के बाद यह पहली बार था जब मृत्युदंड दिया गया.
पिछले वर्ष सितम्बर में एक जापानी अदालत ने इवाओ हाकामाडा को बरी कर दिया था, जिसने लगभग 60 वर्ष पहले किए गए अपराधों के लिए गलत सजा के बाद मृत्युदंड की सजा पर दुनिया में सबसे लम्बा समय बिताया था.जापान में मृत्युदंड की सजा की मानवाधिकार समूहों ने की थी निंदाजापान में मृत्युदंड फांसी पर लटका कर दिया जाता है और कैदियों को फांसी दिए जाने से कई घंटे पहले इसकी सूचना दे दी जाती है, जिसकी मानवाधिकार समूहों द्वारा लंबे समय से निंदा की जाती रही है. क्योंकि इससे मौत की सजा पाने वाले कैदियों को काफी तनाव होता है.